Thursday, January 22, 2015

पूर्वजन्म की यादों ने इन्हें बना दिया संन्यासी



आठारह पुराणों में से परम पवित्र पुराण है श्रीमद्भागवत महापुराण। इस महापुराण में भगवान विष्णु के अवतार और श्रीकृष्ण की लीला कथाओं के अलावा भगवान के भक्त और उनकी मुक्ति की कथाएं भी मौजूद हैं। इसी महापुराण में एक प्रभु भक्त की कथा है जिसे पूर्वजन्म की सभी बातें याद थी।

इन्हीं यादों के कारण राजवंश में जन्म लेने के बाद भी वह सुख और भोगों में लिप्त नहीं हुआ और ऐसे उपाय किए कि माता-पिता को उन्हें घर छोड़ने का आदेश देना पड़ा।

माता-पिता के आदेश से दुःखी होने की बजाय उस प्रभु भक्त ने भगवान को धन्यवाद दिया कि उसे गृह मोह से मुक्त होकर संन्यास ग्रहण करने का अवसर मिला है जिससे वह पूर्वजन्म गलतियों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त हो सके।

यह कथा है भगवान राम के पूर्वज 'असमंजस' की। इच्छवाकु वंश के राजा थे सगर इनकी दो पत्नियां थीं लेकिन विवाह के काफी समय बितने के बाद भी राजा सगर के घर संतान का जब जन्म नहीं हुआ तो राजा ने अपनी दोनों पत्नियों को साथ लेकर तपस्या आरंभ किया।

इनकी तपस्या के देखकर महर्षि और्व ने इन्हें वरदान दिया कि इनकी एक पत्नी के हजार पुत्र होंगे और एक पत्नी को एक पुत्र होंगे। पहली पत्नी ने हजार पुत्र का वरदान स्वीकार कर लिया और दूसरी पत्नी केशिनी ने एक पुत्र का वरदान प्राप्त कर लिया।

केशिनी के पुत्र हुए असमंजस। इन्होंने पूर्वजन्म में योग साधना से उच्च स्थिति प्राप्त कर ली थी। लेकिन कुछ समय के कुसंग के कारण यह मुक्ति से वंचित रह गए और पुनर्जन्म लेना पड़ा। लेकिन इन्हें पूर्वजन्म की सारी बातें याद रही। इसलिए मोह माया से दूर रहने के लिए इन्होंने बचपन से ही ऐसा काम शुरु कर दिया था जिससे घर के लोग इनसे परेशान होकर घर से निकाल दें। कई बार इन्होंने खेलते हुए बच्चों को उठाकर नदी में फेंक दिया। इससे नगरवासी राजकुमार की शिकायत करने लगे। राजा को नाराज होकर अपने पुत्र को देश निकाला देना पड़ा।

नगर से जाते समय असमंजस ने अपने योग बल से उन सभी बच्चों को जीवित कर दिया जिसे उन्होंने नदी में फेंक दिया था। इसके बाद लोगों को अपनी भूल का एहसास हुआ कि असमंजस दिव्य मनुष्य हैं। राजा सगर ने अपने पुत्र की खूब तलाश करवायी लेकिन असमंजस ने गुप्त स्थान पर जाकर साधना में लीन हो चुके थे इसलिए वह किसी को नहीं मिले और अंत में इन्हें मुक्ति मिल गई।

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