Monday, March 23, 2015

नवरात्रि में कन्या को दान करें ये चीजें, प्रसन्न होंगी मां दुर्गा (saujanya Dainik Bhaskar)

शनिवार, 21 मार्च 2015 से चैत्र नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो रहा है। नवरात्रि में मां दुर्गा की आराधना की जाती है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 8 दिन यानी 28 मार्च तक रहेगी। जो भी व्यक्ति नियमित रूप से इन दिनों में पूजन और उपाय करता है, उसकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। देवी को प्रसन्न करने के लिए पूजन कर्म के साथ ही कुछ अन्य उपाय भी बताए गए हैं।
शास्त्रों के अनुसार जिन कन्याओं की उम्र 2 से लेकर 5 वर्ष तक की होती हैं, वे साक्षात् देवी मां का स्वरूप मानी जाती हैं। नवरात्रि के दिनों में इन नन्हीं कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व है।
यदि नवरात्रि में इन कन्याओं को सुंदर उपहार दिया जाए तो नवदुर्गा भी प्रसन्न होती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में अलग-अलग वस्तुएं कन्याओं को भेंट में दी जानी चाहिए।
यहां जानिए नवरात्रि के किस दिन कौन सी चीज का दान कन्याओं को किया जाना चाहिए...
नवरात्रि का पहला दिन
नवरात्रि प्रथम दिन कन्याओं को सुगंधित और ताजा फूल भेंट में देना शुभ होता है। इसके साथ ही, कोई श्रृंगार सामग्री भी अवश्य दें। अगर आप मां सरस्वती को प्रसन्न करना चाहते है तो सफेद पुष्प छोटी कन्याओं को दें। अगर धन संबंधी कार्यों में सफलता पाना चाहते हैं तो लाल पुष्प देकर किसी कन्या को खुश करें।
नवरात्रि का दूसरा दिन
नवरात्रि के दूसरे दिन कन्याओं को फलों का दान करें। इसके बाद कन्याओं का पूजन करें। फलों का दान करने से व्यक्ति की स्वास्थ्य और धन संबंधी कामनाएं पूर्ण होती हैं। ध्यान रखें, फल खट्टे नहीं होना चाहिए, मीठे फलों का दान करें।
आगे जानिए शेष दिनों में क्या दान कर सकते हैं....


चैत्र नवरात्रि: चाहते हैं शुभ फल तो राशि अनुसार करें ये उपाय (saujanya bhaskar.com)




चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 21 मार्च, शनिवार से 28 मार्च, शनिवार तक मनाया जाएगा। ये नौ दिन मां दुर्गा की साधना कर सिद्धियां प्राप्त करने के लिए बहुत ही विशेष माने जाते हैं। इन नौ दिनों तक अगर कोई व्यक्ति राशि अनुसार उपाय करे, तो उसकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है। राशि अनुसार उपाय इस प्रकार हैं-

मेष- इस राशि के लोगों को स्कंदमाता की विशेष उपासना करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें। स्कंदमाता करुणामयी हैं, जो वात्सल्यता का भाव रखती हैं।
वृषभ- वृषभ राशि के लोगों को महागौरी स्वरूप की उपासना से विशेष फल प्राप्त होते हैं। ललिता सहस्रनाम का पाठ करें। जन-कल्याणकारी है। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।
मिथुन- इस राशि के लोगों को देवी यंत्र स्थापित कर मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए साथ ही तारा कवच का रोज पाठ करें। मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान प्रदाता व विद्या के अवरोध दूर करती हैं।





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Hi have a nice Day and Happy Navratri To you All


Saturday, March 21, 2015

Thursday, March 19, 2015

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hi this is nagesh,


omkar bhajan mandal is going to change some rules & regulations regarding the behaviours of person related to them and also we are going to change to responsible person with it...

be connected Note Will  Be Soon


By the way Happy Lalit Bhai


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Wednesday, March 18, 2015

THAHAAKE


टीचर - मोटू... 1 से 10 तक गिनती सुनाओ। मोटू - 1, 2, 3, 4, 5, 7, 8, 9, 10.. टीचर - 6 कहां है..? मोटू - जी वो तो मर गया। टीचर - मर गया..?? कैसे मर गया..?? मोटू - जी मैडम, आज सुबह टीवी पर न्यूज में बता रहे थे कि स्वाइन फ्लू में 6 की मौत हो गई..!! tongue emoticon https://www.facebook.com/omkarpravasibhajanmandal?ref=bookmarks यकिन कर लो भूख मजहब से बहुत बड़ी है। तवायफ तन बेचने से पहले मजहब नहीं देखती है।। _)_)_)_)_)_)_)_)_)_)_) Namak Hath Mein Le Kar Sitamgar Soochte Kiun Ho ? Hazaro'n Zakham Hein Dil Par Jaha'n Chaho Chirak Daalo ______________________ I'm at point of time where it's all fine, I'll just be alone forever. No big deal! _______________________ All the attention in the world doesn't matter if it's not from the one person you want it from. heart emoticon ___________________________ 2G 3G ke piche mat bhaago.. Aey G .. Oo G.. Suno G kehne wali ke piche bhaago ______________________________ Duniya me Rehne ke Liye Do Jagah Sab Se Behtar Aur Khoobsurat Hain. "MAA k DiL Main aur "MAA ki Duaon Main. :')

Tuesday, March 17, 2015

NAVRATRI SPECIAL (NBT)


21 मार्च शनिवार से शुरू हो रहा है नवरात्र। इस बार चैत्र नवरात्र आठ दिन का होगा। एक दिन का लोप होने पर भक्तों को कई सर्वार्थसिद्धि योग मिलेंगे। पं. राधेश्याम शास्त्री के अनुसार 21 मार्च को सुबह 7:41 से 9:11 बजे तक कलश स्थापना करना लाभकारी रहेगा। प्रतिपदा तिथि एक दिन पहले यानी 20 मार्च को दोपहर 3:07 बजे से लगेगी। उसका मान 21 मार्च को सुबह 11:33 बजे तक रहेगा। चूंकि सूर्योदय के बाद प्रतिपदा में ही कलश स्थापना की जाती है इसलिए सूर्योदय से लेकर दिन में 11:33 बजे तक कलश स्थापना की जा सकेगी। शुभ चौघड़िया सुबह सूर्योदय के डेढ़ घंटे बाद मिलेगी। इसलिए यह 21 मार्च को सुबह 7:41 से 9:11 बजे तक कलश स्थापना करना लाभकारी रहेगा। कलश स्थापना के समय स्थिर लग्न वृष रहेगा। इसका स्वामी शुक्र है जो देवी को प्रिय है। 21 मार्च से शुरू हो रहा नवरात्र 8 दिनों का है क्योंकि इस बार तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन पड़ रही है। किस दिन कौन सा योग: 21 मार्च शैलपुत्री देवी - 22 मार्च ब्रह्मचारणी देवी सर्वार्थसिद्धि योग 23 मार्च चंद्रघंटा देवी रवि योग 23 मार्च कूष्मांडा देवी रवि योग 24 मार्च स्कंदमाता देवी सर्वार्थसिद्धि योग 25 मार्च कात्यायनी देवी सर्वार्थसिद्धि योग 26 मार्च कालरात्रि देवी - 27 मार्च महागौरी देवी सर्वार्थसिद्धि योग 28 मार्च सिद्धिदात्री देवी रवि योग

भारत के ऐसे मंदिर जो आज भी बने हुुुए हैं रहस्य (soujanya Dainik Bhaskar)

हिंदू धर्म में मंदिर जाने और पूजन करने का विशेष महत्व माना गया है। कहते हैं मंदिर जाने से मन को शांति मिलती हैं। साथ ही, मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं, लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जो सिर्फ मनोकामना पूरी करने के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी किसी अनोखी या चमत्कारिक विशेषता के कारण भी जाने जाते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के कुछ ऐसे ही प्राचीन मंदिरों के बारे में जिन से जुड़ी चमत्कारिक बातों को कोई माने या न माने, लेकिन इनकी ये खास विशेषताएं किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देती है।

कामाख्या मंदिर - 

कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण किया गया।

इस मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देश भर के तांत्रिक और अघोरी हिस्सा लेते हैं। माना जाता है कि सालभर में एक बार अम्बुबाची मेले के दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं और इन तीन दिन में योनि कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह होता है। इसलिए अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।


मेंहदीपुर बालाजी- 

राजस्थान में मेंहदीपुर बालाजी का मंदिर श्री हनुमान का बहुत जाग्रत स्थान माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर में विराजित श्री बालाजी अपनी दैवीय शक्ति से बुरी आत्माओं से छुटकारा दिलाते हैं। मंदिर में हजारों भूत-पिशाच से त्रस्त लोग प्रतिदिन दर्शन और प्रार्थना के लिए यहां आते हैं, जिन्हें स्थानीय लोग संकटवाला कहते हैं। भूतबाधा से पीड़ित के लिए यह मंदिर अपने ही घर के समान हो जाता है और श्री बालाजी ही उसकी अंतिम उम्मीद होते हैं।



यहां कई लोगों को जंजीर से बंधा और उल्टे लटके देखा जा सकता है। यह मंदिर और इससे जुड़े चमत्कार देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। शाम के समय जब बालाजी की आरती होती है तो भूत-प्रेत से पीड़ित लोगों को जुझते देखा जाता है और आरती के बाद लोग मंदिर के गर्भ गृह में जाते हैं। वहां के पुरोहित कुछ उपाय करते हैं और कहा जाता है इसके बाद पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है।



काल भैरव मंदिर - 

मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से करीब 8 कि.मी. दूर कालभैरव मंदिर स्थित है। भगवान कालभैरव को प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाई जाती है। शराब से भरे प्याले कालभैरव की मूर्ति के मुंह से लगाने पर वह देखते ही देखते खाली हो जाते हैं। मंदिर के बाहर भगवान कालभैरव को चढ़ाने के लिए देसी शराब की आठ से दस दुकानें लगी हैं।
मंदिर में शराब चढ़ाने की गाथा भी बेहद दिलचस्प है। यहां के पुजारी बताते हैं कि स्कंद पुराण में इस जगह के धार्मिक महत्व का जिक्र है। इसके अनुसार, चारों वेदों के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया, तो उन्हें इस काम से रोकने के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए। ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी। इस पर शिवजी ने क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया। इस उग्र स्वभाव के बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी का पांचवां मस्तक काट दिया। इससे लगे ब्रह्म हत्या के पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है। कालांतर में यहां एक बड़ा मंदिर बन गया। मंदिर का जीर्णोद्धार परमार वंश के राजाओं ने करवाया था।



करणी माता मंदिर- 

करणी माता मंदिर राजस्थान में बीकानेर से कुछ दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर है। यह स्थान मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं। इनके बीच अगर कहीं सफेद चूहा दिख जाए तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही यहां की मान्यता है।

वैसे, इसे चूहों को काबा भी कहा जाता है। चूहों को भक्त दूध, लड्डू आदि देते हैं। आश्चर्यजनक बात यह भी है कि असंख्य चूहों से पटे मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता। इस मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश नहीं करती है। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था, तब यह मंदिर ही नहीं, बल्कि यह पूरा इलाका इस बीमारी से महफूज था।



Tuesday, March 03, 2015

भारत के बारे में कुछ खास बातें जानिए ओशो से (amar ujala)

ओशो





भारत के पूरे इतिहास में एक भी बड़ा वैज्ञानिक तुम न पाओगे। ऐसा नहीं कि यहां बुद्धिमान और कुशल लोग न हुए, कि प्रतिभाएं नहीं जन्मीं। गणित की आधारशिला भारत में रखी गई थी, किंतु अल्बर्ट आइंस्टीन यहां पैदा नहीं हुआ। चमत्कारिक रूप से यह पूरा देश किसी बाह्म खोज में उत्सुक ही नहीं था। ‘पर’ की पहचान नहीं, वरन स्वयं को जानना ही यहां एकमात्र लक्ष्य रहा।


कम से कम दस हजार सालों से लाखों-करोड़ों लोग सतत एक ही प्रयास में जुटे रहे, उसके पीछे सब कुछ बलिदान कर दिया विज्ञान, तकनीकी विकास, समृद्धि। उन्होंने दरिद्रता, रुग्णता, बीमारियां और मृत्यु को भी स्वीकार कर लिया, परंतु सत्य की खोज को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ा। इससे एक खास किस्म का वातावरण निर्मित हुआ, कुछ विषेष तरह की तरंगों का सागर जो चारों ओर से तुम्हें घेरे है।


यदि कोई थोड़े से भी ध्यानी चित्त को लेकर यहां आता है, तो उसे उन तरंगों का संस्पर्श होगा। हां, अगर एक पर्यटक की भांति आते हो तो तुम चूक जाओगे। तुम मंदिरों, महलों, खंडहरों को, ताजमहल, खजुराहो, और हिमालय को तो देख लोगे, पर भारत को नहीं देख पाओगे। तुम असली भारत से बिना मिले ही भारत से गुजर जाओगे।

यद्यपि वह सब ओर व्याप्त था, पर तुम संवेदनशील न थे, ग्राहक न थे। तुम कुछ ऐसा देखकर लौटोगे जो वास्तविक भारत नहीं, सिर्फ उसका अस्थि-पंजर है, आत्मा नहीं। तुम्हारे पास उस अस्थि-पंजर के फोटोग्राफ्स होंगे, उनका अलबम बनाओगे और सोचोगे कि भारत घूम आए, भारत को जान लिया। यह स्वयं को धोखा दे रहे हो तुम।

एक आध्यात्मिक पहलू भी है। न तो तुम्हारे कैमरा उसके चित्र लेने में, और न ही तुम्हारे शिक्षा-संस्कार उसे पकड़ने में सक्षम हैं। जर्मनी, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड अथवा किसी भी देश में जाकर तुम वहां के लोगों से मिल सकते हो। वहां के भूगोल से, इतिहास और अतीत से भलीभांति परिचित हो सकते हो।

लेकिन जहां तक भारत का प्रश्न है, ऐसा नहीं किया जा सकता। यदि अन्य देषों की श्रेणी में भारत को गिना, तो प्रारंभ से ही तुमने चूक कर दी, क्योंकि उन देशों में वैसा आध्यात्मिक आभामंडल नहीं है। उन्होंने एक भी गौतम बुद्ध, महावीर, नेमीनाथ और आदिनाथ को जन्म नहीं दिया।

एक भी कबीर, फरीद या दादू पैदा नहीं किया। उन्होंने बड़े वैज्ञानिकों, कवियों, कलाकारों, चित्रकारों और सभी प्रकार के प्रतिभा-संपन्न व्यक्तियों को तो पैदा किया, पर रहस्यदर्शी ऋषि भारत की मोनोपॉली है, एकाधिकार है, कम से कम अभी तक तो यह एकाधिकार रहा है।

ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली

AAJ KA VICHAAR


Amla's best drives South Africa to 411 (http://www.espncricinfo.com/icc-cricket-world-cup-2015/content/story/841003.html)

Chappell: Du Plessis better with responsibility of No. 3
Ireland found out how costly it can be to drop Hashim Amla, giving him a life on 10 and watching him rack up a career-best 159 in Canberra. He was part of a 247-run stand for the second wicket with Faf du Plessis, who made 109, as South Africa crossed 400 for the second match running. And it did not even require much of an innings from AB de Villiers.
There was inevitability to South Africa's mammoth total once Amla and du Plessis had settled themselves inside the opening Powerplay. The ten-over splits highlighted the team's seamless progress: 57, 58, 66, 99 and 131 - the last block dominated by Rilee Rossouw and David Miller in a stand of 110 off 8.3 overs.
Amla's hundred, his 20th in his 108th innings, which made him comfortably the fastest to that landmark, came at a calculated run-a-ball and as he skipped past his previous best of 153 with nine overs remaining, the second double-hundred of the tournament was there for the taking before he picked out long-off. Du Plessis' century, brought up from 103 deliveries, was his first since last September against Zimbabwe and followed half-centuries against India and West Indies.
The finishing touches were put to the innings by Rossouw's 27-ball fifty and Miller's equally punchy 46 off 23 balls. Miller was given lbw on 21 but it had taken a bottom edge and the decision was overturned. Rossouw brought up the 400 with his third six, clubbed over deep midwicket in the final over which cost 24, to carry South Africa beyond 400 for the third time this year.
Amla's reprieve marked the end of a brief period at the start of the match where Ireland made life tricky. John Mooney, who began with consecutive maidens, continued Quinton de Kock's difficult start to the tournament when the opener edged a delivery slanted across him although Ireland needed to use the DRS.
However, even in the early overs when Mooney hit a testing line and length there was no support from the other end as Max Sorensen's first two overs cost a contrasting 21, including five wides. Kevin O'Brien's first two overs, following the pain of seeing Amla missed, also went for 21 and William Porterfield turned to George Dockrell in the tenth over.
Ireland had put faith in their spin attack by recalling Andy McBrine who had bowled ten overs for 26 against West Indies. Fellow offspinner Paul Stirling found an edge in his first over, when du Plessis was on 19, but it flashed between keeper and Kevin O'Brien at slip.
Early on, Dockrell gave too much to cut or pull but he had very respectable figures before suffering against de Villiers and Amla in his final over - an unenviable task while the Powerplay was still in operation.
Briefly Amla and du Plessis had consolidated, but the scoreboard rarely stood still. Their respective fifties came from 52 and 57 deliveries without them barely breaking sweat. The 24th over, the second of Sorensen's second spell, provided a kick to the innings as it was dispatched for 24; Amla effortlessly took sixes over long-on and cover while du Plessis picked up one for himself.
Du Plessis could have been run out on 96 after a mix-up with Amla but the throw went to the keeper rather than the bowler which allowed him to scramble back.
The second over of the second Powerplay, bowled by O'Brien, cost 13 and the next from Mooney was flayed for 27 as his figures took a battering. Amla continued to lead the sixes count, including a wonderful inside-out drive over cover. O'Brien, though, held his nerve and produced a well-disguised slower-ball yorker to defeat du Plessis, although Ireland's fellow bowlers may have wondered if that was a smart move when de Villiers strode to the middle.
This time, though, the fireworks were brief. There was not a dot ball in sight as he skipped to 24 off eight but then got too far under a reverse sweep against McBrine. It meant a memorable double for the offspinner who, two balls earlier, had ended Amla's stay. McBrine ended with figures he could be proud of, but any hopes Ireland may have had of a quieter end to the innings were emphatically dashed.
Andrew McGlashan is a senior assistant editor at ESPNcricinfo

ये मानवीय गुण भोलेनाथ को बनाते हैं आम आदमी का भगवान SOURCE-AMAR UJALA

ये मानवीय गुण भोलेनाथ को बनाते हैं आम आदमी का भगवान



सभी देवी-देवताओं में एक मात्र भगवान भोलेनाथ ही ऐसे हैं जिनकी पूजा देवता, मनुष्य और असुर भी करते हैं।

शास्त्रों और पुराणों के अनुसार शिव आदि देव हैं और सृष्टि के आरंभ से ही मनुष्य इनकी पूजा करता आ रहा है। इसका कारण यह है कि शिव के कुछ गुण ऐसे हैं जो इन्हें सामान्य मनुष्यों से जोड़ता है।

शिव की लीला कथाओं में शिव के ऐसे गुण और चरित्र बताए गए हैं जो अन्य किसी देवता के नहीं हैं।

शिव के यही गुण उन्हें सर्वसाधारण मुनष्य से लेकर संत और महात्माओं को शिव भक्ति के लिए प्रेरित करता है। तो आइये जानें शिव के इन्हीं अद्भुत गुण और चरित्र को।


शिव के रिश्तेदार और इनकी लीला


भगवान शिव की सबसे पहले खूबी यह है कि वह मानव की तरह पारिवारिक जीवन में वास करते हैं। भगवान शिव ने देवी पार्वती के साथ अपनी गृहस्थी बसाई है और इनके परिवार में दो बालक भी हैं कार्तिक और गणेश।

कुछ पुराणों में इनकी पुत्री का भी उल्लेख मिलता है इनकी पुत्री का नाम मनसा देवी है। यह देवी नागों की कुलदेवी हैं। लोक कथाओं में शिव की एक बहन का भी उल्लेख मिलता है। इनकी बहन का नाम असावरी देवी है।

असावरी देवी और पार्वती के रिश्तों को उसी प्रकार दर्शाया गया है जैसे ससुराल में ननद और भाभी का संबंध होता है। इस रुप में भगवान शिव मनुष्य के काफी करीब दिखते हैं और मानव इन्हें पारिवारिक रिश्तों को गढ़ने का आधार मानता है।


शिव का पत्नी वियोग


शिव जी की लीलाओं में पत्नी के वियोग में तड़पना और क्रोधित होकर बदला लेने का प्रयास करना भी इन्हें मनुष्य के करीब लाती है।

भगवान शिव के कई विवाह हैं। देवी पार्वती से पूर्व इनका विवाह दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। भगवान शिव के मना करने पर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। इससे शिव और सती का अपमान हुआ और सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने देह का त्याग कर दिया।

इससे भगवान शिव वियोग में तड़पने लगे और दक्ष को मारने के लिए अपने गण वीरभद्र को भेजा। शिव ने एक पागल प्रेमी की भांति हाहाकार मचाना शुरु कर दिया।

पत्नी के प्रति प्रेम और वियोग की भावना की जो तस्वीर शिव लीला में मिलती है वह एक आम मनुष्य के समान है। इसलिए मनुष्य शिव को खुद के करीब पाता है।


शिव पार्वती की अजब गजब प्रेम लीला


शिव की लीला कथाओं में एक अन्य पहलू मिलता है नाराजगी और रुठने-मनाने का। शिव जी और देवी पार्वती का संबंध उसी प्रकार का दिखता है आम मनुष्यों के दांपत्य जीवन में दिखता है।

भगवान शिव और पार्वती का प्रेम शाश्वत और अमर है। दोनों एक ही शरीर और एक ही आत्मा हैं इसके बावजूद दांपत्य जीवन में कई बार भगवान शिव देवी पार्वती की किसी बात से रुठ कर तपस्या करने चले जाते हैं तो कई बार देवी पार्वती शिव जी से रुठकर अपने मायके चली जाती हैं।

ऐसी बातें आपके भी वैवाहिक जीवन में दिखती होंगी। लेकिन रुठने के बाद जैसे आम मनुष्य अपने साथी को मनाने का जतन करता है ठीक उसी प्रकार शिव और पार्वती भी एक दूसरे को मनाने के जतन करते हैं। शिव पार्वती की यह लीला आम गृहस्थों को आकर्षित करती है। ऐसी लीला किसी अन्य देवी-देवताओं के बीच नहीं दिखती है।

शिव का भंगिया रूप


भगवान शिव को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला कहा गया है। किसी अन्य देवता की पूजा से या तो सिर्फ मोक्ष मिल सकता है या भोग। लेकिन शिव के पास दोनों ही प्रकार प्रकार के वरदान देने की क्षमता है।

भोग देने की योग्यता इसलिए है कि शिव का एक रूप भोग विलास में मस्त रहने वाले एक अवधूत का है। इस रूप में शिव जी अपने में मस्त रहते हैं।

भांग, धतूरा खाकर शिव अपनी धुन में झूमते रहते हैं। कोई अन्य देवी-देवता ऐसे नहीं हैं जो नशीली और खुद को भूल जाने वाली चीजों को खाते हैं।

यह सिर्फ शिव से ही संभव है। आम मनुष्य भी कई बार सभी चीजों को भूलकर मस्त हो जाना चाहता है। शिव जी का यह गुण भी मनुष्य को शिव के करीब लाती है।

शिव का योगी रूप

भगवान शिव का मस्तमौला भंगिया रूप जहां दुनिया जहान की फिक्र को भूलकर खुद के लिए जीने का संदेश देती है वहीं शिव का एक रूप महायोगी का भी है।

शिवजी को सभी देवी-देवताओं में परम योगी माना जाता है। यह परिवार के साथ रहते हैं। परिवार का पालन-पोषण करते हैं।

पत्नी के साथ प्रेम लीला भी करते हैं लेकिन स्वयं परमसत्ता, परमशक्ति होते हुए भी अपने आत्म रुप को परमात्म से जोड़ने के लिए योग में लीन होकर तप भी करते हैं।

शिव का यह रूप आम गृहस्थों को यह संदेश देता है कि मोक्ष पाने के लिए जरूरी नहीं कि आप परिवार का त्याग कर दें। परिवार में रहते हुए भी योगी बने रहें तो मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।

शिव का यह योगेश्वर रुप भी मनुष्य को आकर्षित करता रहा है और गृहस्थ से लेकर योगी तक इनका ध्यान करता रहा है।

शिव का काल भैरव रुप

शास्त्रों और पुराणों में मदिरा का सेवन करना पाप बताया गया है। लेकिन बहुत से मनुष्य मदिरा का सेवन करते हैं। ऐसे में क्या यह पाप के भागी बनेंगे।

भगवान शिव अपने हर भक्त पर कृपालु रहते हैं चाहे वह दूध अर्पित करे और दूध का सेवन या फिर मदिर अर्पित करे और मदिरा का सेवन करे।

अन्य किसी देवता को मदिरा अर्पित नहीं किया जाता। एक मात्र शिव ही हैं जो अपने कालभैरव रुप में मदिरा स्वीकार करते हैं। अपने इस गुण के कारण भी शिव मनुष्यों के प्रिय और करीबी माने जाते हैं।

शिव का नटराज रुप


आमतौर पर मनुष्य जब बहुत प्रसन्न होता है तब नाचता है, गाता है। भगवान भोले नाथ के चरित्र में भी यही गुण मिलता है। भगवान शिव भी जब खुश होते हैं तब नृत्य करते हैं।

नाट्यशास्त्र में उल्लेख मिलता है कि भगवान भोलेनाथ ने ही नृत्य और गायन को जन्म दिया है। इसलिए भगवान शिव नटेश्वर और नटराज भी कहलाते हैं।

शिव का यह गुण आम मनुष्यों से मिलता जुलता है। इसलिए मनुष्य शिव को अपने से जोड़कर देखता है और शिव के प्रति भक्ति भाव रखता है। नर्तक और गायक शिव की कृपा पाने के लिए शिव के नटराज रूप को घर में सजा कर रखते हैं।

शिव का श्रृंगार प्रेम


देवी देवताओं के सजने-संवरने की कथा शायद ही आपको कहीं मिले। लेकिन शिव की लीलाओं में इनका श्रृंगार प्रेम भी मिलता है।

भगवान शिव श्रृंगारप्रिय हैं। इन्हें सजना-संवरना खूब पसंद है। यह अलग बात है कि इनका श्रृंगार रंग रोगन और सोने-चांदी के गहने नहीं हैं।

यह अपना श्रृंगार चिता के भष्म से करते हैं। मस्तक और शरीर के दूसरे अंगों पर चंदन लगाते हैं और गले में सर्प की माला और मुंड की माला धारण करते हैं।

शिव के चरित्र की यह खूबी भी मनुष्य को उसके व्यक्तित्व और व्यवहार से जोड़ता है।

शिवलिंग और भग का मिलन

भगवान शिव काम और वासना से मुक्त हैं। इसका प्रमाण है शिव द्वारा कामदेव को भष्म किया जाना। लेकिन सृष्टि के विकास के लिए शिव ने मैथुनी व्यवस्था को जन्म दिया।

शिव ने अपने आधे शरीर से स्त्री रुपी शक्ति को प्रकट ‌किया। इसके बाद अपनी एक लीला में शिव ने लिंग और भग यानी योनि के मिलन से सृष्टि के विकास की आधारशीला रखी।

आपने देखा भी होगा कि हर शिवलिंग के नीचे आधार रुप में भग होता है। यह उसी घटना का प्रतीक है जब भग और लिंग का मिलन हुआ था। इसलिए शिवलिंग की परिक्रमा के दौरान आधी परिक्रमा ही की जाती है। भग को लांघना पाप माना जाता है।

भगवान शिव के अलावा किसी अन्य देवी-देवता की कथाओं में इस प्रकार की घटना का उल्लेख नहीं मिलता जिसमें आम मनुष्य की तरह सृष्टि के विकास क्रम को आगे बढ़ाने की झलक मिलती हो।

यज्ञ करने का यह फायदा जानेंगे तो आप कहेंगे, हवन करेंगे, हवन करेंगे SOURCE AMAR UJALA




बेशक सभी तरह के रोगियों की तकलीफें आध्यात्मिक उपचारों से ठीक नहीं होती। इसका मतलब यह नहीं है कि वह उपाय असमर्थ हैं। वजह यह है कि उनके उपचार की सही विधि और प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती।

जापान की तोकोहू यूनिवर्सिटी के शोध अनुसंधान विभाग के विद्यार्थी के शोध प्रबंध पर टिप्पणी करते हुए उसके गाइड प्रो.मसाहिरो यामागुची ने यह बात उन्होंने यज्ञों से अस्थमा, हृदय रोग, कैंसर और मस्तिष्क के कुछ रोगों के उपचार की विधियों पर किए गए शोध के प्रकाशन अवसर पर कही।

शोध प्रबंध के एक अंश का जिक्र करते हुए यामागुची ने अपनी ओर से एक संदर्भ का जिक्र किया कि हाइपॉक्सिया (कॉमा) के रोगी को एक स्थिति के बाद वेण्टीलेशन पर रखा जाता है।

उस स्थिति में जब कभी सांस लेने में दिक्कत होती है और कृत्रिम सांस दी जाती है तो उसमें आक्सीजन के अलावा पांच प्रतिशत इसमें कार्बन डायऑक्साइड भी होती है। इतना अंश इसलिए कि मस्तिष्क के केन्द्रों को उत्तेजित कर श्वसन प्रक्रिया नियमित बनायी जा सके।




शोधकर्ता सोइची सोसिका ने बीस चिकित्सा विज्ञानियों का हवाला देते हुए लिखा है कि यज्ञ अग्निहोत्र में उत्पन्न होने वाली वायु ऊर्जा में भी कार्बन डाइआक्साइ़ का यही अनुपात रहता है। रोगों एवं मनोविकारों के कारण उत्पन्न रोगों से छुटकारा पाने के लिये अग्निहोत्र से बढ़कर अन्य कोई उपयुक्त उपचार पद्धति है नहीं, यह सब सुनिश्चित होता जा रहा है।

जापान के सेंदेई क्षेत्र में तोकोहू यूनिवर्सिटी के अलावा अठारह और प्रयोगशालाओं में यज्ञों से उपचार विषय पर गम्भीरता से शोध अध्ययन चल रहे हैं। इस विषय पर शोध अनुसंधान करने वालों की संख्या जिस तरह बढ़ रही है, उससे तय सा लग रहा है कि एक ऐसी सर्वांगपूर्ण चिकित्सा पद्धति का विकास हो सकेगा जिसमें यज्ञ का ही उपयोग किया जा सकेगा।

भारत की तरह और देशों में भी आधुनिक शिक्षा से वंचित तबकों में धूप अगियारी और खास तरह के खाद्यपदार्थों को जला कर उपचार के उपाय किए जाते हैं। प्रो.मसाहिरो का कहना है कि इनमें से कई उपाय युक्तिसंगत नहीं होंगे लेकिन उन उपायों को पूरी तरह नकारना कोई समझदारी नहीं होगी। हो सकता है कि इस तरह यज्ञ से उपचार की पद्धति की कड़ियां मिल सकें।

नीम का तेल कई मामले में बालों के लिए है फायदेमंद SOURCE:-ww.amarujala.com


बाल झड़ने, डैंड्रफ जैसी समस्याओं से परेशान हैं तो नीम के तेल के इस्तेमाल से आपको फायदा मिल सकता है।

आयुर्वेद से लेकर एलोपैथ तक, नीम की जड़ से लेकर तने, छाल, पत्तियों, फल और तेल, नीम का सबकुछ फायदेमंद है।

नीम के हैं ये गुण
नीम में एंटीबैक्टीरियल, एंटी फंगल, एंटी पैरासिटिक गुणों के अलावा, विटामिन सी, प्रोटीन और कैरोटीन प्रचुर मात्रा में है जो न केवल बालों को संक्रमण से मुक्त रखता है और जुएं जैसी समस्याओं से बचाता है बल्कि बालों को लंबे समय तक घना और काला बनाए रखने में मदद करता है।

ऐसे करें इस्तेमाल

नीम का तेल लगाने का सही तरीका इस तरह है। पहले नीं के तेल को हल्का गर्म कर लें।

इससे स्काल्प की मसाज करें। इससे कम से कम एक घंटा और अधिकतम रात भर लगाकर छोड़ें।

इसके बाद शैंपू से बाल अच्छी तरह साफ करें। हफ्ते में कम से कम एक बार यह उपाय करें।