ये मानवीय गुण भोलेनाथ को बनाते हैं आम आदमी का भगवान
सभी देवी-देवताओं में एक मात्र भगवान भोलेनाथ ही ऐसे हैं जिनकी पूजा देवता, मनुष्य और असुर भी करते हैं।
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार शिव आदि देव हैं और सृष्टि के आरंभ से ही मनुष्य इनकी पूजा करता आ रहा है। इसका कारण यह है कि शिव के कुछ गुण ऐसे हैं जो इन्हें सामान्य मनुष्यों से जोड़ता है।
शिव की लीला कथाओं में शिव के ऐसे गुण और चरित्र बताए गए हैं जो अन्य किसी देवता के नहीं हैं।
शिव के यही गुण उन्हें सर्वसाधारण मुनष्य से लेकर संत और महात्माओं को शिव भक्ति के लिए प्रेरित करता है। तो आइये जानें शिव के इन्हीं अद्भुत गुण और चरित्र को।
शिव के रिश्तेदार और इनकी लीला
भगवान शिव की सबसे पहले खूबी यह है कि वह मानव की तरह पारिवारिक जीवन में वास करते हैं। भगवान शिव ने देवी पार्वती के साथ अपनी गृहस्थी बसाई है और इनके परिवार में दो बालक भी हैं कार्तिक और गणेश।
कुछ पुराणों में इनकी पुत्री का भी उल्लेख मिलता है इनकी पुत्री का नाम मनसा देवी है। यह देवी नागों की कुलदेवी हैं। लोक कथाओं में शिव की एक बहन का भी उल्लेख मिलता है। इनकी बहन का नाम असावरी देवी है।
असावरी देवी और पार्वती के रिश्तों को उसी प्रकार दर्शाया गया है जैसे ससुराल में ननद और भाभी का संबंध होता है। इस रुप में भगवान शिव मनुष्य के काफी करीब दिखते हैं और मानव इन्हें पारिवारिक रिश्तों को गढ़ने का आधार मानता है।
कुछ पुराणों में इनकी पुत्री का भी उल्लेख मिलता है इनकी पुत्री का नाम मनसा देवी है। यह देवी नागों की कुलदेवी हैं। लोक कथाओं में शिव की एक बहन का भी उल्लेख मिलता है। इनकी बहन का नाम असावरी देवी है।
असावरी देवी और पार्वती के रिश्तों को उसी प्रकार दर्शाया गया है जैसे ससुराल में ननद और भाभी का संबंध होता है। इस रुप में भगवान शिव मनुष्य के काफी करीब दिखते हैं और मानव इन्हें पारिवारिक रिश्तों को गढ़ने का आधार मानता है।
शिव का पत्नी वियोग
शिव जी की लीलाओं में पत्नी के वियोग में तड़पना और क्रोधित होकर बदला लेने का प्रयास करना भी इन्हें मनुष्य के करीब लाती है।
भगवान शिव के कई विवाह हैं। देवी पार्वती से पूर्व इनका विवाह दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। भगवान शिव के मना करने पर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। इससे शिव और सती का अपमान हुआ और सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने देह का त्याग कर दिया।
इससे भगवान शिव वियोग में तड़पने लगे और दक्ष को मारने के लिए अपने गण वीरभद्र को भेजा। शिव ने एक पागल प्रेमी की भांति हाहाकार मचाना शुरु कर दिया।
पत्नी के प्रति प्रेम और वियोग की भावना की जो तस्वीर शिव लीला में मिलती है वह एक आम मनुष्य के समान है। इसलिए मनुष्य शिव को खुद के करीब पाता है।
भगवान शिव के कई विवाह हैं। देवी पार्वती से पूर्व इनका विवाह दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। भगवान शिव के मना करने पर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। इससे शिव और सती का अपमान हुआ और सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने देह का त्याग कर दिया।
इससे भगवान शिव वियोग में तड़पने लगे और दक्ष को मारने के लिए अपने गण वीरभद्र को भेजा। शिव ने एक पागल प्रेमी की भांति हाहाकार मचाना शुरु कर दिया।
पत्नी के प्रति प्रेम और वियोग की भावना की जो तस्वीर शिव लीला में मिलती है वह एक आम मनुष्य के समान है। इसलिए मनुष्य शिव को खुद के करीब पाता है।
शिव पार्वती की अजब गजब प्रेम लीला
शिव की लीला कथाओं में एक अन्य पहलू मिलता है नाराजगी और रुठने-मनाने का। शिव जी और देवी पार्वती का संबंध उसी प्रकार का दिखता है आम मनुष्यों के दांपत्य जीवन में दिखता है।
भगवान शिव और पार्वती का प्रेम शाश्वत और अमर है। दोनों एक ही शरीर और एक ही आत्मा हैं इसके बावजूद दांपत्य जीवन में कई बार भगवान शिव देवी पार्वती की किसी बात से रुठ कर तपस्या करने चले जाते हैं तो कई बार देवी पार्वती शिव जी से रुठकर अपने मायके चली जाती हैं।
ऐसी बातें आपके भी वैवाहिक जीवन में दिखती होंगी। लेकिन रुठने के बाद जैसे आम मनुष्य अपने साथी को मनाने का जतन करता है ठीक उसी प्रकार शिव और पार्वती भी एक दूसरे को मनाने के जतन करते हैं। शिव पार्वती की यह लीला आम गृहस्थों को आकर्षित करती है। ऐसी लीला किसी अन्य देवी-देवताओं के बीच नहीं दिखती है।
भगवान शिव और पार्वती का प्रेम शाश्वत और अमर है। दोनों एक ही शरीर और एक ही आत्मा हैं इसके बावजूद दांपत्य जीवन में कई बार भगवान शिव देवी पार्वती की किसी बात से रुठ कर तपस्या करने चले जाते हैं तो कई बार देवी पार्वती शिव जी से रुठकर अपने मायके चली जाती हैं।
ऐसी बातें आपके भी वैवाहिक जीवन में दिखती होंगी। लेकिन रुठने के बाद जैसे आम मनुष्य अपने साथी को मनाने का जतन करता है ठीक उसी प्रकार शिव और पार्वती भी एक दूसरे को मनाने के जतन करते हैं। शिव पार्वती की यह लीला आम गृहस्थों को आकर्षित करती है। ऐसी लीला किसी अन्य देवी-देवताओं के बीच नहीं दिखती है।
शिव का भंगिया रूप
भगवान शिव को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला कहा गया है। किसी अन्य देवता की पूजा से या तो सिर्फ मोक्ष मिल सकता है या भोग। लेकिन शिव के पास दोनों ही प्रकार प्रकार के वरदान देने की क्षमता है।
भोग देने की योग्यता इसलिए है कि शिव का एक रूप भोग विलास में मस्त रहने वाले एक अवधूत का है। इस रूप में शिव जी अपने में मस्त रहते हैं।
भांग, धतूरा खाकर शिव अपनी धुन में झूमते रहते हैं। कोई अन्य देवी-देवता ऐसे नहीं हैं जो नशीली और खुद को भूल जाने वाली चीजों को खाते हैं।
यह सिर्फ शिव से ही संभव है। आम मनुष्य भी कई बार सभी चीजों को भूलकर मस्त हो जाना चाहता है। शिव जी का यह गुण भी मनुष्य को शिव के करीब लाती है।
भोग देने की योग्यता इसलिए है कि शिव का एक रूप भोग विलास में मस्त रहने वाले एक अवधूत का है। इस रूप में शिव जी अपने में मस्त रहते हैं।
भांग, धतूरा खाकर शिव अपनी धुन में झूमते रहते हैं। कोई अन्य देवी-देवता ऐसे नहीं हैं जो नशीली और खुद को भूल जाने वाली चीजों को खाते हैं।
यह सिर्फ शिव से ही संभव है। आम मनुष्य भी कई बार सभी चीजों को भूलकर मस्त हो जाना चाहता है। शिव जी का यह गुण भी मनुष्य को शिव के करीब लाती है।
शिव का योगी रूप
भगवान शिव का मस्तमौला भंगिया रूप जहां दुनिया जहान की फिक्र को भूलकर खुद के लिए जीने का संदेश देती है वहीं शिव का एक रूप महायोगी का भी है।
शिवजी को सभी देवी-देवताओं में परम योगी माना जाता है। यह परिवार के साथ रहते हैं। परिवार का पालन-पोषण करते हैं।
पत्नी के साथ प्रेम लीला भी करते हैं लेकिन स्वयं परमसत्ता, परमशक्ति होते हुए भी अपने आत्म रुप को परमात्म से जोड़ने के लिए योग में लीन होकर तप भी करते हैं।
शिव का यह रूप आम गृहस्थों को यह संदेश देता है कि मोक्ष पाने के लिए जरूरी नहीं कि आप परिवार का त्याग कर दें। परिवार में रहते हुए भी योगी बने रहें तो मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।
शिव का यह योगेश्वर रुप भी मनुष्य को आकर्षित करता रहा है और गृहस्थ से लेकर योगी तक इनका ध्यान करता रहा है।
शिवजी को सभी देवी-देवताओं में परम योगी माना जाता है। यह परिवार के साथ रहते हैं। परिवार का पालन-पोषण करते हैं।
पत्नी के साथ प्रेम लीला भी करते हैं लेकिन स्वयं परमसत्ता, परमशक्ति होते हुए भी अपने आत्म रुप को परमात्म से जोड़ने के लिए योग में लीन होकर तप भी करते हैं।
शिव का यह रूप आम गृहस्थों को यह संदेश देता है कि मोक्ष पाने के लिए जरूरी नहीं कि आप परिवार का त्याग कर दें। परिवार में रहते हुए भी योगी बने रहें तो मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।
शिव का यह योगेश्वर रुप भी मनुष्य को आकर्षित करता रहा है और गृहस्थ से लेकर योगी तक इनका ध्यान करता रहा है।
शिव का काल भैरव रुप
शास्त्रों और पुराणों में मदिरा का सेवन करना पाप बताया गया है। लेकिन बहुत से मनुष्य मदिरा का सेवन करते हैं। ऐसे में क्या यह पाप के भागी बनेंगे।
भगवान शिव अपने हर भक्त पर कृपालु रहते हैं चाहे वह दूध अर्पित करे और दूध का सेवन या फिर मदिर अर्पित करे और मदिरा का सेवन करे।
अन्य किसी देवता को मदिरा अर्पित नहीं किया जाता। एक मात्र शिव ही हैं जो अपने कालभैरव रुप में मदिरा स्वीकार करते हैं। अपने इस गुण के कारण भी शिव मनुष्यों के प्रिय और करीबी माने जाते हैं।
भगवान शिव अपने हर भक्त पर कृपालु रहते हैं चाहे वह दूध अर्पित करे और दूध का सेवन या फिर मदिर अर्पित करे और मदिरा का सेवन करे।
अन्य किसी देवता को मदिरा अर्पित नहीं किया जाता। एक मात्र शिव ही हैं जो अपने कालभैरव रुप में मदिरा स्वीकार करते हैं। अपने इस गुण के कारण भी शिव मनुष्यों के प्रिय और करीबी माने जाते हैं।
शिव का नटराज रुप
आमतौर पर मनुष्य जब बहुत प्रसन्न होता है तब नाचता है, गाता है। भगवान भोले नाथ के चरित्र में भी यही गुण मिलता है। भगवान शिव भी जब खुश होते हैं तब नृत्य करते हैं।
नाट्यशास्त्र में उल्लेख मिलता है कि भगवान भोलेनाथ ने ही नृत्य और गायन को जन्म दिया है। इसलिए भगवान शिव नटेश्वर और नटराज भी कहलाते हैं।
शिव का यह गुण आम मनुष्यों से मिलता जुलता है। इसलिए मनुष्य शिव को अपने से जोड़कर देखता है और शिव के प्रति भक्ति भाव रखता है। नर्तक और गायक शिव की कृपा पाने के लिए शिव के नटराज रूप को घर में सजा कर रखते हैं।
नाट्यशास्त्र में उल्लेख मिलता है कि भगवान भोलेनाथ ने ही नृत्य और गायन को जन्म दिया है। इसलिए भगवान शिव नटेश्वर और नटराज भी कहलाते हैं।
शिव का यह गुण आम मनुष्यों से मिलता जुलता है। इसलिए मनुष्य शिव को अपने से जोड़कर देखता है और शिव के प्रति भक्ति भाव रखता है। नर्तक और गायक शिव की कृपा पाने के लिए शिव के नटराज रूप को घर में सजा कर रखते हैं।
शिव का श्रृंगार प्रेम
देवी देवताओं के सजने-संवरने की कथा शायद ही आपको कहीं मिले। लेकिन शिव की लीलाओं में इनका श्रृंगार प्रेम भी मिलता है।
भगवान शिव श्रृंगारप्रिय हैं। इन्हें सजना-संवरना खूब पसंद है। यह अलग बात है कि इनका श्रृंगार रंग रोगन और सोने-चांदी के गहने नहीं हैं।
यह अपना श्रृंगार चिता के भष्म से करते हैं। मस्तक और शरीर के दूसरे अंगों पर चंदन लगाते हैं और गले में सर्प की माला और मुंड की माला धारण करते हैं।
शिव के चरित्र की यह खूबी भी मनुष्य को उसके व्यक्तित्व और व्यवहार से जोड़ता है।
भगवान शिव श्रृंगारप्रिय हैं। इन्हें सजना-संवरना खूब पसंद है। यह अलग बात है कि इनका श्रृंगार रंग रोगन और सोने-चांदी के गहने नहीं हैं।
यह अपना श्रृंगार चिता के भष्म से करते हैं। मस्तक और शरीर के दूसरे अंगों पर चंदन लगाते हैं और गले में सर्प की माला और मुंड की माला धारण करते हैं।
शिव के चरित्र की यह खूबी भी मनुष्य को उसके व्यक्तित्व और व्यवहार से जोड़ता है।
शिवलिंग और भग का मिलन
भगवान शिव काम और वासना से मुक्त हैं। इसका प्रमाण है शिव द्वारा कामदेव को भष्म किया जाना। लेकिन सृष्टि के विकास के लिए शिव ने मैथुनी व्यवस्था को जन्म दिया।
शिव ने अपने आधे शरीर से स्त्री रुपी शक्ति को प्रकट किया। इसके बाद अपनी एक लीला में शिव ने लिंग और भग यानी योनि के मिलन से सृष्टि के विकास की आधारशीला रखी।
आपने देखा भी होगा कि हर शिवलिंग के नीचे आधार रुप में भग होता है। यह उसी घटना का प्रतीक है जब भग और लिंग का मिलन हुआ था। इसलिए शिवलिंग की परिक्रमा के दौरान आधी परिक्रमा ही की जाती है। भग को लांघना पाप माना जाता है।
भगवान शिव के अलावा किसी अन्य देवी-देवता की कथाओं में इस प्रकार की घटना का उल्लेख नहीं मिलता जिसमें आम मनुष्य की तरह सृष्टि के विकास क्रम को आगे बढ़ाने की झलक मिलती हो।
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