Monday, July 28, 2014

अनानास (Pineapple)

अनानास (Pineapple) -
                             अनानास ब्राज़ील का आदिवासी पौधा है | क्रिस्टोफर कोलंबस ने 1493 AD में कैरेबियन द्वीप समूह के ग्वाडेलोप नाम के द्वीप 
में इसे खोजा था और इसे 'पाइना दी इंडीज' नाम दिया | कोलंबस ने यूरोप में अनानास की खेती की शुरुआत की थी | भारत में अनानास की खेती की 
शुरुआत पुर्तगालियों ने 1548 AD में गोवा से की थी | अनानास की डालियाँ काटकर बोने से उग आती हैं |
                     
                                अनानास का फल बहुत स्वादिष्ट होता है | इसके कच्चे फल का स्वाद खट्टा तथा पके फल का स्वाद मीठा होता है । इसके फल 
में थाइमिन,राइबोफ्लेविन,सुक्रोस,ग्लूकोस,कैफीक अम्ल,सिट्रिक अम्ल,कार्बोहाईड्रेट तथा प्रोटीन पाया जाता है | आज हम आपको अनानास के कुछ 
औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -


१- अनानास फल के रस में मुलेठी, बहेड़ा और मिश्री मिलाकर सेवन करने से दमे और खाँसी में लाभ होता है|
२- यदि शरीर में खून की कमी हो तो अनानास खाने व रस पीने से बहुत लाभ होता है | इसके सेवन से रक्तवृद्धि होती है और पाचनक्रिया तेज़ होती है |
३- अनानास के पके फल के बारीक टुकड़ों में सेंधानमक और कालीमिर्च मिलाकर खाने से अजीर्ण दूर होता है |
४- अनानास के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें बहेड़ा और छोटी हरड़ का चूर्ण मिलाकर देने से अतिसार और जलोदर में लाभ होता है |
५- अनानास के पत्तों के रस में थोड़ा शहद मिलाकर रोज़ २ मिली से १० मिली तक सेवन करने से पेट के कीड़े ख़त्म हो जाते हैं |
६- पके हुए अनानास का रस निकालकर उसे रूई में भिगो कर मसूड़ों पर लगाने से दांतों का दर्द ठीक होता है |

(तर्ज:नजर के सामने जिगर के पास..) . श्याम दरबार में, करो फ़रियाद.......

(तर्ज:नजर के सामने जिगर के पास..)
.
श्याम दरबार में, करो फ़रियाद.......
श्याम दरबार में, करो फ़रियाद
सबकी सुनता है, बाबा श्याम ...
बाबा तेरी महिमा की, मैंने सुनी कहानी
जग में तेरे चर्चे हैं, तुमसा नहीं है दानी
सुनके आया हूँ मैं, बाबा श्याम, तेरा नाम
श्याम दरबार में....
तेरे दर पर जो आता, खाली कभी नहीं जाता
मन की मुरादें वह पाता, दामन भरके ले जाता
तुमने पुरे किये, बाबा श्याम, सबके काम
श्याम दरबार में....
पापी से भी पापी को, तुमने बाबा तार दिया..........
गज,अजामिल,गणिका का,तुमने श्याम उद्धार किया
कितने आते हैं, बाबा श्याम, तेरे धाम
श्याम दरबार में....
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मीरा सी मस्ती देना, प्रहलाद सी देना शक्ति.....
हनुमत सी भक्ति देना, 'टीकम' करता है विनती
लबों पे रहें तूं, बाबा श्याम, आठों याम
श्याम दरबार में....
श्याम दरबार में, करो फ़रियाद
सबकी सुनता है, बाबा श्याम ...
श्याम दरबार में, करो फ़रियाद

!!जय मोर्वीनंदन जय श्री श्याम!!

What is Shankh (Conch)?

What is Shankh (Conch)?

                   A Shankh (conch) is a natural cover/wrapper of an oceanic worm/creature that protects him from the out side attacks/dangers, and when the worm grows up he comes out from it and he throws it away forever.

Types of Shankh (Conch) ......
1. Dakshinavarti Shankha (दक्षिणावर्ती शंख): The Shankha that is open from right side is known as “Dakshinavarti Shankha” Shankha …..!! It is rare, white in color and contains a brownish line on it.
2. Vamavarti Shankha (वामावर्ती शंख): It opens from left side that’s why it is called Vamavarti; it is used in all the religious activities. Astrologers recommend this SHANKHA to remove the negative energy.
There are a lot of more types of SHANKHA but these two are the main types of SHANKHA.

SPIRITUAL IMPORTANCE :-
    SHANKHA is one of the 14 gems (RATNA) received from churning sea (SAMUNDRA MANTHAN.)
     
    SHANKHA’s sound is a symbol of victory in VEDAS
       
    SHANKHA produces the sound of OM.
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श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय-1 (15)
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः |
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ||
श्रीकृष्ण महाराजने पाज्चजन्य नामक, अर्जुनने देवदत्त नामक और भीमसेनने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया ।
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        SHANKHA is produced from SAMUNDRA-MANTHAN and Bhagwan Vishnu accepted SHANKA for his special adornment. So SHANKHA belongs to Bhagwan Vishnu

SCIENTIFIC ANALYSIS:
1. According to Vedic science ….. As far as the SHANKHA’s sound goes, it destroys the harmful micro bacteria from the atmosphere or at least makes them unconscious. (Modern science and scientists also accepted the fact)
2. According to ASTROLOGY science, SHANKHA’s sound destroys the negative energy from the atmosphere.
3. Playing SHANKHA regularly is beneficial in respiratory diseases like
asthma and liver problems.
4. Playing SHANKHA is equal to doing PRANAYAM (yoga) that saves us from the most deadly diseases like heart attack, high blood pressure, respiratory diseases, lever related problems etc.
5. Offering water to sun by the Dakshinavarti Shankha protects one from the eye disorders.
6. Regular use of a SHANKHA removes deafness and impediments.
7. A SHANKHA contains plenty of calcium, brimstone and phosphorous in it, and when we put water in a SHANKHA for a while, water becomes fragrant and sterile. That’s why this water is used in religious rituals, prayers and also sprinkled over the people.
8. SHANKHA water is sprinkled over the people that protects them from the skin diseases.
9. Put GANGA WATER in SHANKHA for the whole night and next day in the morning give it to the heart patients and the patients of diabetes to rinse with it. It will surely help.
10. According to VASTU SHASTRA, having a SHANKHA at home removes all the VASTU DOSH (Architectural Defects) of building.
             
             Famous Indian Scientist JAGDISH CHANDRA BOSE did a lot of experiments on SHANKHA and SHANKHA's sound and finally he reached the conclusion that SHANKHA's sound is special, through his experiments he proved many scientific and medical importance of SHANKHA.




जानिए शिव पूजा और फल.....

जानिए शिव पूजा और फल.....

                                शिवलिंग पर गंगा जल से अभिषेक करने से भौतिक सुख प्राप्त होता हैं एवं मनुष्य को मोक्ष कि प्राप्ति होती हैं।

            शिव पुराण के अनुशार शिवलिंग पर अन्न, फूल एवं विभिन्न वस्तुओं से जलाभिषेक कर मनुष्य के समस्त प्रकार के कष्टोका निवारण किया जासकता हैं।

                निम्न साधना शिव प्रतिमा(मूर्ति) के समक्ष करने से शीघ्र लाभ प्राप्त होते हैं।

            लक्ष्मी प्राप्ति हेतु भगवान शिव को बिल्वपत्र, कमल, शतपत्र एवं शंखपुष्प अर्पण करने से लाभ प्राप्त होता हैं।

        पुत्र प्राप्ति हेतु भगवान शिव को धतुरे के फूल अर्पण करने से शुभ फल कि प्राप्ति होती हैं।

        भौतिक सुख एवं मोक्ष प्राप्ति हेतु स्वेत आक, अपमार्ग एवं सफेद कमल के फूल भगवान शिव को चढाने से लाभ प्राप्त होता हैं।

            वाहन सुख कि प्राप्ति हेतु चमेली के फूल भगवान शिव को चढाने से शीघ्र उत्तम वाहन प्राप्ति के योग बनते हैं।

        विवाह सुख में आने वाली बाधाओं को दूर करने हेतु बेला के फूल भगवान शिव को चढाने से उत्तम पत्नी की प्राप्ति होती होती हैं एवं कन्या के फूल चढाने से उत्तम पति कि प्राप्ति होती हैं।

        जूही के फूल भगवान शिव को चढाने से व्यक्ति को अन्न का अभाव नहीं होता हैं।

        सुख सम्पत्ति की प्राप्ति हेतु भगवान शिव को हार सिंगार के फूल चढाने से लाभ प्राप्त होता हैं।

शिवलिंग पर अभिषेक हेतु प्रयोग

        वंश वृद्धि हेतु शिवलिंग पर घी का अभिषेक शुभ फलदायी होता हैं।
   
    भौतिक सुख साधनो में वृद्धि हेतु शिवलिंग पर सुगंधित द्रव्य से अभिषेक करने से शीघ्र उनमें बढोतरी होती हैं।

        रोग निवृत्ति हेतु महामृत्युंजय मंत्र जप करते हुवे शहद (मधु) से अभिषेक करने से रोगों का नाश होता हैं।

        रोजगार वृद्धि हेतु गंगाजल एवं शहद (मधु) से अभिषेक करने से लाभ प्राप्त होता हैं।

        मानसिक अशांति व मानसिक कमजोरी के निवारण हेतु शिवलिंग पर जल अथवा दूध या दोनो के मिश्रण से अभिषेक करना चाहिए।

        पारिवारीक अशांति के निवारण हेतु शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करना चाहिए।
       
        आनावश्यक कष्टो एवं दु:खो के निवारण हेतु शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करना चाहिए।

Friday, July 25, 2014

जामुन [ Jambul Tree ]

जामुन [ Jambul Tree ]
                             जामुन के सदाहरित वृक्ष जंगलों और सड़कों के किनारे सर्वत्र पाए जाते हैं | इसका पेड़ आम के पेड़ की तरह ही काफी बड़ा होता है | 
जामुन के पेड़ की छाल का रंग सफ़ेद-भूरा होता है | इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों जैसे होते हैं | जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं 
और जुलाई से अगस्त तक जामुन पक जाते हैं | जामुन में लौह [ iron ] और phosphorus काफी मात्रा में होता है | 

जामुन मधुमेह , पथरी , लिवर ,तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है | यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकलता है | जामुन और उसके बीज 
पाचक और स्तम्भक होते हैं | 

जामुन का विभिन्न रोगों में प्रयोग :-----

१- ३००- ५०० मिली ग्राम जामुन के सूखे बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है | 

२- जामुन के १० मि.ली. रस में २५० मिली ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में २-३ बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशयगत पथरी नष्ट होती है |

३- जामुन के १०-१५ मि.ली. रस में २ चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , खून की कमी तथा रक्त विकार में लाभ होता है | 

४- जामुन के पत्तों की राख को दांतों और मसूढ़ों पर मलने से दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं | 

५- जामुन के ५-६ पत्तों को पीसकर लगाने से घाव में से पस बाहर निकल जाती है तथा घाव स्वच्छ हो जाते हैं । 

६- तंग जूतों से पाँव में जख्म हो गए हों तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है |

नोट :- जामुन का पका हुआ फल अधिक मात्र में सेवन करना हानिकारक हो सकता है , इसको नमक मिलाकर ही खाना चाहिए |

Monday, July 21, 2014

Shiv Tandav Strota

Jatatavee gala jjala pravaha pavitha sthale,
Gale avalabhya lambithaam bhujanga thunga malikaam,
Dama ddama dama ddama ninnadava damarvayam,
Chakara chanda thandavam thanothu na shiva shivam.
Jata kataha sambhramabrama nillimpa nirjari,
Vilola veechi vallari viraja mana moordhani,
Dhaga dhaga daga jjwala lalata patta pavake,
Kishora Chandra shekare rathi prathi kshanam mama.
Dara darendra nandini vilasa bhandhu bhandura,
Sphuradigantha santhathi pramodha mana manase,
Krupa kadaksha dhorani niruddha durdharapadi,
Kwachi digambare mano vinodhamethu vasthuni.
Jada bhujanga pingala sphurath phana mani prabha,
Kadamba kumkuma drava praliptha digwadhu mukhe,
Madhandha sindhura sphurathwagu utthariya medhure,
Mano vinodhamadhbutham bibarthu bhootha bharthari.
Sahasra lochana prabhoothyasesha lekha shekhara,
Prasoona dhooli dhorani vidhu sarangri peedabhu,
Bhujangaraja Malaya nibhadha jada jhootaka,
Sriyai chiraya jayatham chakora bandhu shekhara.
Lalata chathwara jwaladhanam jaya sphulingabha,
Nipeetha pancha sayagam saman nilimpanayakam,
Sudha mayookha lekhaya virajamana shekharam,
Maha kapali sampade, siro jadalamasthu na.
Karala bhala pattika dhagadhaga jjwala,
Ddhanam jayahuthi krutha prachanda pancha sayage ,
Dharadharendra nandhini kuchagra chithrapathraka,
Prakalpanaika shilpini, trilochane rather mama.
Naveena megha mandali nirudha durdharath sphurath,
Kahoo niseedhi neethama prabhandha bandha kandhara,
Nilimpa nirjari darsthanothu kruthi sindhura,
Kala nidhana bandhura sriyam jagat durandhara.
Prafulla neela pankaja prapancha kalima prabha,
Valambhi kanda kanthali ruchi prabandha kandharam,
Smarschidham puraschidham bhavaschidham makhachidham,
Gajachidandakachidham tham anthakachidham bhaje.
Agarva sarva mangalaa kalaa kadamba manjari,
Rasa pravaha madhuri vijrumbha mana madhu vrtham,
Suranthakam, paranthakam, bhavanthakam, makhandakam,
Gajandhakandhakandakam thamanthakanthakam bhaje.
Jayathwadhabra vibramadbujaamga maswasath,
Vinirgamath, kramasphurath, karala bhala havya vat,
Dhimi dhimi dhimi dhwanan mrudanga thunga mangala,
Dhwani karma pravarthitha prachanda thandawa shiva.
Drusha dwichi thra thalpayor bhujanga moukthika srajo,
Garishta rathna loshtayo suhrudhwi paksha pakshayo,
Trunara vinda chakshusho praja mahee mahendrayo,
Samapravarthika kadha sadashivam bhajamyaham.
Kada nilampa nirjaree nikunja kotare vasan,
Vimuktha durmathee sada sirasthanjaleem vahan,
Vilola lola lochano lalama bhala lagnaka,
Shivethi manthamucharan kada sukhee bhavamyaham.
Imam hi nithya meva muktha muthamothamam sthavam,
Padan, smaran broovan naro vishudhimethi santhatham,
Hare Gurou subhakthimasu yathi nanyadha gatheem,
Vimohinam hi dehinaam sushakarasya chithanam.
Poojavasana samaye dasa vakhra geetham,
Ya shambhu poojana param padthi pradhoshe,
Thasya sthiraam radha gajendra thuranga yuktham,
Lakshmeem sadaiva sumukheem pradadathi shambu.
Ithi Ravana krutham,
Shiva thandava stotram,
Sampoornam.
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि
लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि
सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |
नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे
जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्
पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः
इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम् |

Saturday, July 19, 2014

जीरा (जीरक) -

जीरा (जीरक) -
                 जीरा श्वेत,श्याम और अरण्य (जंगली) तीन प्रकार का होता है | श्वेत या सफ़ेद जीरे से सब परिचित हैं क्यूंकि इसका प्रयोग मसाले के 
रूप में किया जाता है | औषधियों के रूप में भी जीरे का बहुत उपयोग किया जाता है | सफ़ेद जीरा दाल-सब्जी छौंकने के काम आता है तथा शाह जीरे 
का उपयोग विशेष रूप से दवा के रूप में किया जाता है | जीरे की खेती समस्त भारत,विशेषकर उत्तर प्रदेश,राजस्थान और पंजाब में की जाती है | 

जीरे के औषधीय गुण -

१- जीरा,धनिया और मिश्री तीनों को बराबर मात्रा में मलाकर पीस लें | इस चूर्ण की २-२ चम्मच सुबह-शाम सादे पानी से लेने पर अम्लपित्त या 
एसिडिटी ठीक हो जाती है |

२- जीरा,सेंधा नमक,काली मिर्च,सौंठ और पीपल सबको समान मात्रा में लेकर पीस लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में भोजन के बाद ताजे पानी 
से लेने पर अपच में लाभ होता है |

३- पांच ग्राम जीरे को भूनकर तथा पीसकर दही की लस्सी में मिलाकर सेवन करने से दस्तों में लाभ होता है |

४- १५ ग्राम जीरे को ४०० मिली पानी में उबाल लें | जब १०० ग्राम शेष रह जाये तब २०-४० मिली की मात्रा में प्रातः-सांय पिलाने से पेट के कीड़े
 मर जाते हैं |

५- एक चम्मच भुने हुए जीरे के बारीक़ चूर्ण में एक चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन भोजन के बाद सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है |

६- जीरे को बारीक़ पीस लें | इस चूर्ण का ३-३ ग्राम गर्म पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करने से पेट के दर्द तथा बदन दर्द से छुटकारा मिलता है |

इलायची बड़ी (ग्रेटर कार्डमम)

इलायची बड़ी (ग्रेटर कार्डमम) -
                              बड़ी इलायची के फल एवं सुगन्धित कृष्ण वर्ण के बीजों से भला कौन अपरिचित हो सकता है | भारतीय रसोई में यह इस तरह से 
रची बसी है कि इसका प्रयोग मसालों से लेकर मिष्ठानों तक में किया जाता है |इसकी एक प्रजाति मोरंग इलायची भी होती है| यह पूर्वी हिमालय 
प्रदेश में विशेषतः नेपाल,पश्चिम बंगाल,सिक्किम,आसाम आदि में पायी जाती है | इसका छिलका मोटा तथा मटमैले रंग का धारीदार होता है | 
इसके बीज कृष्ण वर्ण के शर्करायुक्त गाढ़े गूदे के कारण आपस में चिपके हुए होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है | 
इसके बीजों में ग्लाइकोसाइड,सिनिओल,लिमोनीन,टर्पिनिओल,फ्लेवोनोन आदि रसायन तथा वाष्पशील तेल पाया जाता है | इसके तेल में 
सिनिओल की अधिकता पायी जाती है | 


आज हम आपको बड़ी इलायची के औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- बड़ी इलायची को पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से एवं बीजों को पीसकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है |

२- बड़ी इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर छालों पर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं |

३- यदि दांत में दर्द हो रहा हो तो बड़ी इलायची और लौंग के तेल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीड़ायुक्त दांत पर लगाएं ,दर्द में शांति मिलेगी |

४- यदि अधिक थूक या लार आती हो तो बड़ी इलायची और सुपारी को बराबर-बराबर पीसकर ,१-२ ग्राम की मात्रा में लेकर चूसते रहने से यह कष्ट
 दूर हो जाता है |

५- पांच से दस बूँद बड़ी इलायची तेल में मिश्री मिलाकर नियमित सेवन करने से दमा में लाभ होता है |

६- दो ग्राम सौंफ के साथ बड़ी इलायची के ८-१० बीजों का सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ती है |

७- एक ग्राम बड़ी इलायची बीज चूर्ण को दस ग्राम बेलगिरी के साथ मिलाकर प्रातः सायं सेवन करने से दस्तों में लाभ होता है |

८- पिसी हुई राई के साथ बड़ी इलायची चूर्ण मिलाकर २-३ ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करने से लीवर सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |

९- एक से दो बड़ी इलायची के चूर्ण को दिन में तीन बार नियमित सेवन करने से शरीर का दर्द ठीक होता है |

Friday, July 18, 2014

SUVICHAAR

वक़्त अच्छा ज़रूर आता है;
मगर वक़्त पर ही आता है! 



कागज अपनी किस्मत से उड़ता है; 
लेकिन पतंग अपनी काबिलियत से!
इसलिए किस्मत साथ दे या न दे;
काबिलियत जरुर साथ देती है!


दो अक्षर का होता है लक;
ढाई अक्षर का होता है भाग्य;
तीन अक्षर का होता है नसीब;
साढ़े तीन अक्षर की होती है किस्मत;
पर ये चारों के चारों चार अक्षर, मेहनत से छोटे होते हैं!........


जिंदगी में दो लोगों का ख्याल रखना बहुत जरुरी है!
पिता: जिसने तुम्हारी जीत के लिए सब कुछ हारा हो!
माँ: जिसको तुमने हर दुःख में पुकारा
 हो! 


काम करो ऐसा कि पहचान बन जाये;
हर कदम चलो ऐसे कि निशान बन जायें;
यह जिंदगी तो सब काट लेते हैं;
जिंदगी ऐसे जियो कि मिसाल बन जाये!


भगवान की भक्ति करने से शायद हमें माँ न मिले;
लेकिन माँ की भक्ति करने से भगवान् अवश्य मिलेंगे!


अहंकार में तीन गए;
धन, वैभव और वंश!
ना मानो तो देख लो;
रावन, कौरव और कंस!


'इंसान' एक दुकान है, और 'जुबान' उसका ताला;
जब ताला खुलता है, तभी मालुम पड़ता है;
कि दूकान 'सोने' कि है, या 'कोयले' की!


आपको कौन मिलता है, यह समय तय करता है!
आप उनमें से किसका साथ चाहते हैं, यह आप तय करते हैं!
और उनमें से कौन आपके साथ रहता है, यह आपका व्यहार तय करता है!


स्वास्थ्य सबसे बड़ी दौलत है! संतोष सबसे बड़ा खजाना है! आत्म -विश्वास सबसे बड़ा मित्र है!



मीठे बोल बोलिये क्योंकि अल्फाजों में जान होती है;
इन्हीं से आरती, अरदास और इन्हीं से अज़ान होती है;
यह समुंदर के वह मोती हैं;
जिनसे इंसानों की पहचान होती है!"

OMKAR BHAJAN MANDAL STORY

गुजरात के एक पटेल वैष्णव निष्कंचन थे। मजूरी कर क़े अपना निर्वाह करते।
एक बार गुजरात वेष्णवो के संघ के साथ श्री गुंसाईजी के दर्शन करने ब्रज में आये।
वेष्णवो का संघ जब जतीपुरा आया तब श्रीनाथजी के दर्शन कर सभी ने रूद्र कुण्ड पर मुकाम किया।
रात्रि को सभी वैष्णव श्री गुंसाईजी को धरने के लिए भेंट निकालने लगे।
पटेल वैष्णव विचार करे की- गुरु के पास खाली हाथ केसे जा सके? मेरे पास भेंट धरने के लिए कुछ भी नही है। क्या करू में? इसी चिंता में पटेल वैष्णव को रात भर नींद नही आई। सुबह उठकर पटेल वैष्णव आगे चलने लगा। रास्ते में एक बगीचे में सुन्दर पुष्प खिले थे। पटेल वैष्णव बगीचे में जाकर बगीचे के माली को एक वस्त्र (अंगोछा) दिया और बदले में माली से पुष्प मांगे। माली ने राजी होकर पटेल वैष्णव को खूब सारे सुन्दर पुष्प दिए।
पटेल वैष्णव ने पुष्प लेकर एक सुन्दर मालाजी सिद्ध करी। पटेल वैष्णव के मन में एक ही आरती की कब ये मालाजी श्री गुंसाईजी के कंठ में धरू? श्री गुंसाईजी के चरणकमल का ध्यान करते करते पटेल वैष्णव आगे चलता गया।
दयासागर, कृपासागर श्री गुंसाईजी को पटेल वैष्णव की आरती सहन नही हुई। श्री गुंसाईजी श्रीनाथजी का श्रंगार कर के, घोड़े पर सवार होकर पटेल वैष्णव के सामने पधारे।
मार्ग में श्री गुंसाईजी को वेष्णवो का संघ मिला। सभी वैष्णव ने भेंट धरने हेतु श्री गुंसाईजी से विनती करी।
श्री गुंसाई ने आज्ञा करी की मेरा पटेल वैष्णव पुष्प की माला लेकर आ रहा है। वो जहा होगा वही में रुकुंगा।
श्री गुंसाईजी ने अपना घोड़ा पटेल वैष्णव के पास रोका। पटेल वैष्णव ने सुन्दर पुष्प की मालाजी श्री गुंसाईजी को धराई।
मलाजी धराने के पश्चात पटेल वैष्णव को मूर्छा आ गई। श्री गुंसाईजी ने पटेल वैष्णव को सावधान किया। उस दिन से श्री गुंसाईजी ने फूलघर की सेवा पटेल वैष्णव को सोंपी।
पूर्णपुरषोत्तम स्वरूप श्री गुंसाईजी भक्तमनोरथपूरक है। भक्तो के अलोकिक मनोरथ पूर्ण करने के लिए श्री गुंसाईजी सदा तत्पर रहते है।
।।ऐसे परमदयाल श्री गुंसाईजी की सदा सर्वदा जय हो।

Wednesday, July 16, 2014

चकोतरा

चकोतरा -
                              चकोतरा संतरे की प्रजाति का फल है | यह सभी रसदार फलों में सबसे बड़े आकार का फल है | चकोतरे में संतरे की अपेक्षा 
सिट्रिक अम्ल अधिक तथा शर्करा कम होती है | इसका छिलका पीला तथा अंदर का भाग लाल रंग का होता है | इसमें नींबू और संतरे के सभी गुण 
मिलते हैं | चकोतरा शीतल प्रकृति का होता है तथा इसका स्वाद खट्टा और मीठा होता है | यह प्यास को रोकता है तथा भूख बढ़ाता है | इसके सेवन 
से चेहरे का रंग साफ़ होता है | 

विभिन्न रोगों में चकोतरे का उपयोग -

१- चकोतरे के पत्तों का दस- बीस मिली रस प्रतिदिन सुबह - शाम सेवन करने से उँगलियों का कांपना ठीक हो जाता है |

२- चकोतरे के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से शरीर की थकावट दूर होती है |

३- मलेरिया में चकोतरे का रस पीने से लाभ होता है क्यूंकि इसके रस में कुनैन होता है |

४- चकोतरे के रस में पानी मिलकर पीने से बुखार में लाभ होता है तथा अधिक प्यास लगना बंद हो जाता है |

५- चकोतरे के सेवन से जुकाम से भी बचा जा सकता है |

पान

पान
                पान का प्रयोग भारतवर्ष में सिर्फ़ खाने के लिए ही नहीं अपितु पूजन , यज्ञ तथा अतिथियों के स्वागत इत्यादि में भी किया जाता है , पान 
को औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है , जिससे आज हम आपका परिचय करने जा रहे हैं -------

१- मुँह के छालों के लिए पान के पत्तों के रस में शहद मिलाकर लगाने से लाभ होता है , यह प्रयोग दिन में दो -तीन बार किया जा सकता है |

२-घाव के ऊपर पान के पत्ते को गर्म करके बांधें तो सूजन और दर्द शीघ्र ही ठीक होकर घाव भी ठीक हो जाता है |

३-शरीर में होने वाली पित्ती होने पर , एक चम्मच फिटकरी को थोड़े से पानी में डालें , तीन खाने वाले पान के पत्ते लें | फिटकरी वाले पानी में मिलाकर 
इन पत्तों को पीस लें | इस मिश्रण को पित्ती के चिकत्तों पर लेप करें , लाभ होगा |

४ - मोच आने पर पान के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर गर्म करें , फिर इसे मोच पर बांधें शीघ्र लाभ होगा |

Monday, July 14, 2014

OMKAR BHAJAN MANDAL

YESTERDAY DATED
13th of July 2014
Jalaram Mandir
Charkop
Kandivali West

We held a Bhajan Satsang Program Where Everybody Enjoyed Here We are Sharing Some Moments Photos
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MukundVihaar Temple No Maharaj