इस संसार को बनाने वाले ब्रह्मा जी ने एक बार मनुष्य को अपने पास बुला कर
पूछा-‘तुम क्या चाहते हो?’ मनुष्य ने कहा-‘मैं उन्नति करना चाहता हूँ, सुख- शान्ति चाहता हूँ और चाहता हूँ
कि सब लोग मेरी प्रशंसा करें।’ ब्रह्मा जी ने मनुष्य के सामने दो थैले धर दिये। वे बोले-‘इन थैलों को ले लो।
इनमें से एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयाँ भरी हैं। उसे पीठ पर लाद लो।उसे सदा बंद रखना।न तुम
देखना, न दूसरों को दिखाना। दूसरे थैले में तुम्हारे दोष भरे हैं। उसे सामने लटकालो और बार-बार खोल कर
देखा करो।’ मनुष्य ने दोनों थैले उठा लिये।लेकिन उससे एक भूल हो गयी। उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठ
पर लाद लिया और उस का मुँह कस कर बंद कर दिया। अपने पड़ोसी की बुराइयों से भरा थैला उसने सामने
लटका लिया। उसका मुँह खोल कर वह उसे देखता रहता है और दूसरों को भी दिखाता रहता है। इससे उसने
जो वरदान माँगे थे, वे भी उलटे हो गये। वह अब विनति करने लगा।उसे दुःख और अशान्ति मिलने लगी। तुम
मनुष्य की वह भूल सुधार लो तो तुम्हारी उन्नति होगी। तुम्हें सुख- शान्ति मिलेगी। जगत् में तुम्हारी प्रशंसा
होगी। तुम्हें करना यह है कि अपने पड़ोसी और परिचितों के दोष देखना बंद कर दो और अपने दोषों पर सदा
दृष्टि रखो।
पूछा-‘तुम क्या चाहते हो?’ मनुष्य ने कहा-‘मैं उन्नति करना चाहता हूँ, सुख- शान्ति चाहता हूँ और चाहता हूँ
कि सब लोग मेरी प्रशंसा करें।’ ब्रह्मा जी ने मनुष्य के सामने दो थैले धर दिये। वे बोले-‘इन थैलों को ले लो।
इनमें से एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयाँ भरी हैं। उसे पीठ पर लाद लो।उसे सदा बंद रखना।न तुम
देखना, न दूसरों को दिखाना। दूसरे थैले में तुम्हारे दोष भरे हैं। उसे सामने लटकालो और बार-बार खोल कर
देखा करो।’ मनुष्य ने दोनों थैले उठा लिये।लेकिन उससे एक भूल हो गयी। उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठ
पर लाद लिया और उस का मुँह कस कर बंद कर दिया। अपने पड़ोसी की बुराइयों से भरा थैला उसने सामने
लटका लिया। उसका मुँह खोल कर वह उसे देखता रहता है और दूसरों को भी दिखाता रहता है। इससे उसने
जो वरदान माँगे थे, वे भी उलटे हो गये। वह अब विनति करने लगा।उसे दुःख और अशान्ति मिलने लगी। तुम
मनुष्य की वह भूल सुधार लो तो तुम्हारी उन्नति होगी। तुम्हें सुख- शान्ति मिलेगी। जगत् में तुम्हारी प्रशंसा
होगी। तुम्हें करना यह है कि अपने पड़ोसी और परिचितों के दोष देखना बंद कर दो और अपने दोषों पर सदा
दृष्टि रखो।
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