Monday, June 30, 2014

कान का दर्द -

कान का दर्द -
     गर्मियों में कान के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में संक्रमण होना आम बात है| अधिकतर तैराकों को ख़ास-तौर पर इस परेशानी का सामना करना पड़ता है | कान में फुंसी निकलने,पानी भरने या किसी प्रकार की चोट लगने की वजह से दर्द होने लगता है | कान में दर्द होने के कारण रोगी हर समय तड़पता रहता है तथा ठीक से सो भी नहीं पाता| बच्चों के लिए कान का दर्द अधिक पीड़ा भरा होता है | लगातार जुक़ाम रहने से भी कान का दर्द हो जाता है |
                
                  आज हम आपको कान के दर्द के लिए कुछ घरेलू उपचार बताएंगे -
१- तुलसी के पत्तों का रस निकाल लें| कान में दर्द या मवाद होने पर रस को गर्म करके कुछ दिन तक लगातार डालने से आराम मिलता है |
२- लगभग १० मिली सरसों के तेल में ३ ग्राम हींग डाल कर गर्म कर लें | इस तेल की १-१ बूँद कान में डालने से कफ के कारण पैदा हुआ कान का दर्द ठीक हो जाता है |
३- कान में दर्द होने पर गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का रस निकालकर कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है |
४- तिल के तेल में लहसुन की काली डालकर गर्म करें,जब लहसुन जल जाए तो यह तेल छानकर शीशी में भर लें | इस तेल की कुछ बूँदें कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है |
५- अलसी के तेल को गुनगुना करके कान में १-२ बूँद डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है |
६- बीस ग्राम शुध्द घी में बीस ग्राम कपूर डालकर गर्म कर लें | अच्छी तरह पकने के बाद ,ठंडा करके शीशी में भरकर रख लें | इसकी कुछ बूँद कान में डालने से दर्द में आराम मिलता है |

ATUL BHAI: *जय श्री कृष्णा🚩 **मैँ वैष्णव हूँ**

ATUL BHAI: *जय श्री कृष्णा🚩 **मैँ वैष्णव हूँ***

किसी ने एक बार मुझसे सवाल किया -
"तुम्हेँ वैष्णव होने पर इतना अभिमान क्यूँ है,
आखिर तुम भी तो एक आम इंसान हो,
तुम्हारे खून का रंग औरो से अलग है क्या ??"
मैँने कहा - मैँ वैष्णव हूँ, इसका मुझे
 अभिमान नहीं है
 परन्तु.....
हाँ मुझे गर्व है कि मैँ वैष्णव हूँ, क्यूँकि....
 . .
मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए बचपन से ही धर्म और संस्कृति से जुड़ा हूँ...
 .
 .
मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए मैँ शाकाहारी हूँ...
 .
 .
मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए बडो का आदर करना जानता हूँ... मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए स्वच्छता और सात्विकता का ध्यान रखता हूँ...
 मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए सहयोग की भावना मेरे दिल मेँ है...
 .
 . मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए जीव हत्या से बचने का प्रयास करता हूँ... मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए अपशब्दोँ का प्रयोग नहीँ करता...
 . .
 .
 .
 .
 .
 . मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए मेरे लहजे मेँ मिठास है...
 .
 .
मैँ वैष्णव हूँ,
इसीलिए ये सारे संस्कार मुझे मेरे परिवार से मिले हैँ........
   🚩जय श्री कृष्णा

ATUL BHAI: story

एक बार सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा मैं आप को कैसी लगती हूँ?

श्रीकृष्ण ने कहा तुम मुझे नमक जैसी लगती हो।

सत्यभामा इस तुलना को सुन कर क्रुद्ध हो गयी, तुलना भी की तो किस से, आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला।

श्रीकृष्ण ने उस वक़्त तो किसी तरह सत्यभामा को मना लिया और उनका गुस्सा शांत कर दिया।

कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया। छप्पन भोग की व्यवस्था हुई।

सर्वप्रथम आठों पटरानियों को, जिनमें पाकशास्त्र में निपुण सत्यभामा भी थी, से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया श्रीकृष्ण ने।

सत्यभामा ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या.. सब्जी में नमक ही नहीं था। सत्यभामा ने उस कौर को मुँह से निकाल दिया।

फिर दूसरा कौर मावा-मिश्री का मुँह में डाला और फिर उसे चबाते-चबाते बुरा सा मुँह बनाया और फिर पानी की सहायता से किसी तरह मुँह से उतारा।

अब तीसरा कौर फिर कचौरी का मुँह में डाला और फिर.. आक्..थू !

तब तक सत्यभामा का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। जोर से चीखीं.. किसने बनाई है यह रसॊइ?

सत्यभामा की आवाज सुन कर श्रीकृष्ण दौड़ते हुए सत्यभामा के पास आये और पूछा क्या हुआ देवी? कुछ गड़बड़ हो गयी क्या? इतनी क्रोधित क्यों हो? तुम्हारा चेहरा इतना तमतमा क्यूँ रहा है? क्या हो गया?

सत्यभामा ने कहा किसने कहा था आपको भोज का आयोजन करने को?
इस तरह बिना नमक की कोई रसोई बनती है? किसी वस्तु में नमक नहीं है। मीठे में शक्कर नहीं है। एक कौर नहीं खाया गया। किसी तरह से पानी की सहायता से एक कौर मावा का गले से नीचे उतारा।

श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से पूछा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था, तो क्या हुआ बिना नमक के ही खा लेती।

सत्यभामा फिर चीख कर बोली लगता है दिमाग फिर गया है आपका? बिना शक्कर के मिठाई तो फिर भी खायी जा सकती है मगर बिना नमक के कोई भी नमकीन वस्तु नहीं खायी जा सकती है।

तब श्रीकृष्ण ने अपनी बालसुलभ मुस्कान के साथ कहा तब फिर उस दिन क्यों गुस्सा हो गयी थी जब मैंने तुम्हे यह कहा कि तुम मुझे नमक जितनी प्रिय हो।

अब सत्यभामा को सारी बात समझ में आ गयी की यह सारा वाकया उसे सबक सिखाने के लिए था और उस की गर्दन झुक गयी जबकि अन्य रानियाँ मुस्कुराने लगी।

कहानी का तात्पर्य यह है कि स्त्री जल की तरह होती है, जिसके साथ मिलती है उसका ही गुण अपना लेती है।

कहानी का तात्पर्य यह है कि स्त्री नमक की तरह होती है, जो अपना अस्तित्व मिटा कर भी अपने प्रेम-प्यार तथा आदर-सत्कार से परिवार को ऐसा बना देती है।
उसके बिना सब कुछ अधुरा लगने लगता है, अलुणा लगने लगता है।

माला तो आप सबने देखी होगी। तरह-तरह के फूल पिरोये हुए पर शायद ही कभी किसी ने अच्छी से अच्छी माला में "गुम" उस सूत को देखा होगा जिसने उन सुन्दर सुन्दर फूलों को एक साथ बाँध कर रखा है।
लोग तारीफ़ तो उस माला की करते हैं जो दिखाई देती है मगर तब उन्हें उस सूत की याद नहीं आती जो अगर टूट जाये तो सारे फूल इधर-उधर बिखर जाते है।

कहानी का तात्पर्य यह है कि स्त्री उस सूत की तरह होती है,
जो बिना किसी चाह के, बिना किसी कामना के, बिना किसी पहचान के, अपना सर्वस्व खो कर भी किसी के जान-पहचान की मोहताज नहीं होती है और
शायद इसीलिए दुनिया राम के पहले सीता को और श्याम के पहले राधे को याद करते है।

अपने को विलीन कर के पुरुषों को सम्पूर्ण करने की शक्ति भगवान् ने स्त्रियों को ही दी है।

ATUL BHAI

पु पाद गो श्री 108 श्री द्वारकेशजी प्रभू विरचित यह कविता में हमारी पूजनीय गायमाता !!!! की दयनीय परिस्थिति - करुण कथनी को एक आवाज़ मिली हैं . यह काव्य तस्मैन श्री गुरुवे नाम: की timeline पर प्रस्तुत हैं
.
कृपया इसे ध्यान से पढ़िए - बार बार पढ़िए और ज्यादा से ज्यादा share करे । हो सके तो आज से गोग्रास निकालें बिना भोजन नहीं लेने का नियम अवश्य लीजिये । धन्यवाद

् गाय हूँ, मैं गाय हूँ,
इक लुप्त-सा अध्याय हूँ।
........................................
लोग कहते माँ मुझे
पर मैं बड़ी असहाय हूँ।।
.....................................
दूध मेरा पी रहे सब,
और ताकत पा रहे।
.................................
पर हैं कुछ पापी यहाँ जो, माँस मेरा खा रहे।

देश कैसा है जहाँ, हर पल ही गैया कट रही।
रो रही धरती हमारी, उसकी छाती फट
रही।

शर्म हमको अब नहीं है, गाय-वध के जश्न पर,
मुर्दनी छाई हुई है, गाय के इस प्रश्न पर।

मुझको बस जूठन खिला कर, पुन्य जोड़ा जा रहा,
जिंदगी में झूठ का, परिधान ओढ़ा जा रहा।

कहने को हिंदू हैं लेकिन, गाय को नित मारते।
चंद पैसों के लिये, ईमान अपना हारते।

चाहिए सब को कमाई, बन गई दुनिया कसाई।
माँस मेरा बिक रहा मैं, डॉलरों की आय हूँ।।

मेरे तन में देवताओं का, सुना था वास है।
पर मुझे लगता है अब तो, बात यह बकवास है।

कैसे हैं वे देव जो, कटते यहाँ दिन-रात अब,
झूठ कहना बंद हो, पचती नहीं यह बात अब।

मर गई है चेतना, इस दौर को धिक्कार है।
आदमी को क्या हुआ, फितरत से शाकाहार है।

ओ कन्हैया आ भी जाओ, गाय तेरी रो रही।
कंस के वंशज बढ़े हैं, पाप उनके ढो रही।

जानवर घबरा रहे हैं, हर घड़ी इनसान से।
स्वाद के मारे हुए, पशुतुल्य हर नादान से।

खून मेरा मत बहाओ, दूध मेरा मत लजाओ।
बिन यशोदा माँ के अब तो, भोगती अन्याय हूँ।।

मैं भटकती दर-ब-दर, चारा नहीं, कचरा मिले,
कामधेनु को यहाँ बस, जहर ही पसरा मिले।

जहर खा कर दूध देती, विश्वमाता हूँ तभी,
है यही इच्छा रहे, तंदरुस्त दुनिया में सभी।

पालते हैं लोग कुत्ते और बिल्ली चाव से,
रो रहा है मन मेरा, हर पल इसी अलगाव से।

डॉग से बदतर हुई है, गॉड की सूरत यहाँ,
सोच पश्चिम की बनी है इसलिए आफत यहाँ।

खो गया गोकुल हमारा, अब कहाँ वे ग्वाल हैं,
अब तो बस्ती में लुटेरे, पूतना के लाल हैं।

देश को अपने जगाएँ, गाँव को फौरन बचाएँ।
हो रही है नष्ट दुनिया, मैं धरा की हाय हूँ।।

गाय हूँ मैं गाय हूँ........

Wipro chairman Mr. Azim prem ji's comment on reservation By Atul Bhai

Wipro chairman Mr. Azim prem ji's comment on reservation:

* I think we should have job reservations in all the fields.
I completely support the PM and all the politicians for promoting this.
Let's start the reservation with our cricket team.
We should have 10 percent reservation for Muslims.
30 percent for OBC, SC /ST like that. Cricket rules should be modified accordingly.
The boundary circle should be reduced for an SC/ST player.
The four hit by an SC/ST/OBC player should be considered
as a six and a six hit by a SC/ST/OBC player should be counted as 8 runs.
An SC/ST/OBC player scoring 60 runs should be declared as a century.
We should influence ICC and make rules so that the pace bowlers
like Shoaib Akhtar should not bowl fast balls to our SC/ST/OBC player.
Bowlers should bowl maximum speed of 80 kilometer per hour to an SC/ST/OBC
player. Any delivery above this speed should be made illegal.
Also we should have reservation in Olympics. In the 100 meters race,
an SC/ST/OBC player should be given a gold medal if he runs 80 meters.
There can be reservation in Government jobs also.
Let's recruit SC/ST and OBC pilots for aircrafts which are
carrying the ministers and politicians (that can really help the country)
Ensure that only SC/ST and OBC doctors do the operations for the ministers
and other politicians. (Another way of saving the country..)
Let's be creative and think of ways and means to guide INDIA forward.
Let's show the world that INDIA is a GREAT country.
Let's be proud of being an INDIAN...
May the good breed of politicians long live..*

*Share it if yu r against reservation

ATUL BHAI: राधे राधे- आज का भगवद चिन्तन - 29-6-2014

ATUL BHAI: राधे राधे- आज का भगवद चिन्तन - 29-6-2014

                From London

 भोगी के लिए वन में भी भय है और योगी के लिए घर में भी बन जैसा आनंद है। जिसका मन विकार मुक्त हो चुका है वो हर जगह , हर घड़ी आनन्द अनुभव करता है। जैसे पतंग उड़ाने वाला आकाश में बहुत ऊपर तक पतंग ले जाता है पर डोरी अपने हाथ में रखता है
 थोड़ी सी भी उलझने पर पतंग को वापिस अपने पास खींच लेता है। भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को गीता में कहते हैं कि वैसे ही जो पुरुष विवेक रुपी डोर से इन्द्रियों रुपी पतंग को वश में करके अनासक्त होकर कर्म करता है, वह कभी भी नहीं उलझता।
 आसक्ति भाव से किये जाने वाले कर्म ही दुःख का कारण बनते हैं। दुःख वाहर से प्रगट नहीं होता , वह भीतर से प्रगट होता है। समस्या वाहर नहीं भीतर है। समाधान भीतर ही मिलेगा, जब भी मिलेगा। अपने मन को समझाकर ही सुखी हुआ जा सकता है।
                   
                 जगन्नाथ रथ यात्रा की बधाई
                  !! संजीव कृष्ण ठाकुर जी !!

Arvind Bhai: Really nice

Arvind Bhai: Really nice

Bol ke padhna,
sukun milega...

जो चाहा कभी पाया नहीं,
जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी मिला नहीं,
जो मिला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है
पर
जो पाया संभाला जाता नहीं ,
क्यों
अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं...

जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई बड़ी बात
नहीं है,
क्योंकि,
झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।

ज़िन्दगी जीने के दो तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो.!

जिंदगी जीना आसान नहीं होता; बिना संघर्ष कोई
महान नहीं होता.!

जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है; पर जो हर हाल में
खुश रहते हैं; जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।

चेहरे की हंसी से हर गम चुराओ; बहुत कुछ बोलो पर
कुछ ना छुपाओ;

खुद ना रूठो कभी पर सबको मनाओ;

राज़ है ये जिंदगी का बस जीते चले जाओ।


"गुजरी हुई जिंदगी को
                   कभी याद न कर,

तकदीर मे जो लिखा है
               उसकी फर्याद न कर...

जो होगा वो होकर रहेगा,

तु कल की फिकर मे
           अपनी आज की हसी बर्बाद न कर...

 हंस मरते हुये भी गाता है
और
      मोर नाचते हुये भी रोता है....

  ये जिंदगी का फंडा है बॉस

दुखो वाली रात
              निंद नही आती
  और
       खुशी वाली रात
                     .कौन सोता है...


ईश्वर का दिया कभी अल्प नहीं होता;
जो टूट जाये वो संकल्प नहीं होता;
हार को लक्ष्य से दूर ही रखना;
क्योंकि जीत का कोई विकल्प नहीं होता।

जिंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के लिए ही होती हैं :
"सांस और साथ"
सांस टूटने से तो इंसान 1 ही बार मरता है;
पर किसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।

जीवन का सबसे बड़ा अपराध - किसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि - किसी की आँख में आंसू आपके लिए होना।

जिंदगी जीना आसान नहीं होता;
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता;
जब तक न पड़े हथोड़े की चोट;
पत्थर भी भगवान नहीं होता।

जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ - ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है।

मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।

दुनिया में कोई भी चीज़ अपने आपके लिए नहीं बनी है।
जैसे:
दरिया - खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ - खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज - अपने लिए हररात नहीं देता।
फूल - अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
मालूम है क्यों?
क्योंकि दूसरों के लिए ही जीना ही असली जिंदगी है।

मांगो तो अपने रब से मांगो;जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।

कभी भी 'कामयाबी' को दिमाग और 'नकामी' को दिल में जगह नहीं देनी चाहिए।क्योंकि, कामयाबी दिमाग में घमंड और नकामी दिल में मायूसी पैदा करती है।

कौन देता है उम्र भर का सहारा। लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं।🌿

कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए।यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता?


mohan bhai: KAVITA

मेघा ओ मेघा  
    मेघा ओ मेघा ,  
           तुजे कुछ तो याद होगा ...
   आषाढ़ी माहोल और धरती है प्यासी ,
           न जाने अब क्या होगा .
                      मेघा ओ मेघा ...

    तेरे नाम की माला जप रहे ,
    तेरे इंतजार में पत्थर पिघल रहे ,
    पाषाण ह्रदय का कैसे तू हो गया .
                      मेघा ओ मेघा .....

   कागज की कश्ती मेरी ,
   सुखी रेत में दफ़न हो गई ,
   बच्चो की खिलखिलाहट ,
   गमगीन आँखों में डूब गई ,
  इतना जालिम बेवफा कैसे तू हो गया .
                     मेघा ओ मेघा ......

  बस अब खत्म हुआ इंतजार .
                          आजा तू ....
  गलती हमारी माफ़ कर ,
  बरस जा तू ' दिलदार ' बरस जा तू ...
  जोली हमारी भरनेवाला ,
  रूठा रूठा कैसे तू हो गया .

  मेघा ओ मेघा .....
                तुजे कुछ तो याद होगा ...


mohan bhai: Suvichaar

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात
अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में
रहना ।।

चाहता तो हु की
ये दुनिया
बदल दू
पर दो वक़्त की रोटी के
जुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती
दोस्तों

महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली,
वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से
कभी ना चला ...!

युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे ..
पता नही था की, 'किमत
चेहरों की होती है!!'

अगर खुदा नहीं हे तो उसका ज़िक्र
क्यों ??
और अगर खुदा हे तो फिर फिक्र
क्यों ???

"दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर
देती हैं,
एक उसका 'अहम' और
दूसरा उसका 'वहम'......

" पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता
और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।"

मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।

माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"

दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है
या नहीं,
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नही

ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात
"आख़री" होगी,
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी ।
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक
दूसरे से,
ना जाने कौनसी "मुलाक़ात"
आख़री होगी ....।।।।

अगर जींदगी मे कुछ पाना हो तो
तरीके बदलो,....ईरादे नही....||

ग़ालिब ने खूब कहा है :
ऐ चाँद तू किस मजहब का है !!
ईद भी तेरी और करवाचौथ भी तेरा!!

जो लोग पत्नी का मजाक उड़ाते है। बीवी के नाम पर कई msg भेजते है उन सभी के लीये... By Mohan Bhai

जो लोग पत्नी का मजाक उड़ाते है। बीवी के नाम पर कई msg भेजते है उन सभी के लीये --------------

Please Read This....
A Lady's Simple Questions & Surely It Will Touch A Man's heart...
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देह मेरी ,
हल्दी तुम्हारे नाम की ।

हथेली मेरी ,
मेहंदी तुम्हारे नाम की ।

सिर मेरा ,
चुनरी तुम्हारे नाम की ।

मांग मेरी ,
सिन्दूर तुम्हारे नाम का ।

माथा मेरा ,
बिंदिया तुम्हारे नाम की ।

नाक मेरी ,
नथनी तुम्हारे नाम की ।

गला मेरा ,
मंगलसूत्र तुम्हारे नाम का ।

कलाई मेरी ,
चूड़ियाँ तुम्हारे नाम की ।

पाँव मेरे ,
महावर तुम्हारे नाम की ।

उंगलियाँ मेरी ,
बिछुए तुम्हारे नाम के ।

बड़ों की चरण-वंदना
मै करूँ ,
और 'सदा-सुहागन' का आशीष
तुम्हारे नाम का ।

और तो और -
करवाचौथ/बड़मावस के व्रत भी
तुम्हारे नाम के ।

यहाँ तक कि
कोख मेरी/ खून मेरा/ दूध मेरा,
और बच्चा ?
बच्चा तुम्हारे नाम का ।

घर के दरवाज़े पर लगी
'नेम-प्लेट' तुम्हारे नाम की ।

और तो और -
मेरे अपने नाम के सम्मुख
लिखा गोत्र भी मेरा नहीं,
तुम्हारे नाम का ।

सब कुछ तो
तुम्हारे नाम का...

Namrata se puchti hu?

आखिर तुम्हारे पास...
क्या है मेरे नाम का?

एक लड़की ससुराल चली गई।
कल की लड़की आज बहु बन गई.
कल तक मौज करती लड़की,
अब ससुराल की सेवा करना सीख गई.
कल तक तो टीशर्ट और जीन्स पहनती लड़की,
आज साड़ी पहनना सीख गई.
पिहर में जैसे बहती नदी,
आज ससुराल की नीर बन गई.
रोज मजे से पैसे खर्च करती लड़की,
आज साग-सब्जी का भाव करना सीख गई.
कल तक FULL SPEED स्कुटी चलाती लड़की,
आज BIKE के पीछे बैठना सीख गई.
कल तक तो तीन वक्त पूरा खाना खाती लड़की,
आज ससुराल में तीन वक्त
का खाना बनाना सीख गई.
हमेशा जिद करती लड़की,
आज पति को पूछना सीख गई.
कल तक तो मम्मी से काम करवाती लड़की,
आज सासुमां के काम करना सीख गई.
कल तक भाई-बहन के साथ
झगड़ा करती लड़की,
आज ननद का मान करना सीख गई.
कल तक तो भाभी के साथ मजाक करती लड़की,
आज जेठानी का आदर करना सीख गई.
पिता की आँख का पानी,
ससुर के ग्लास का पानी बन गई.
फिर लोग कहते हैं कि बेटी ससुराल जाना सीख गई.
(यह बलिदान केवल लड़की ही कर
सकती है,इसिलिए हमेशा लड़की की झोली
वात्सल्य से भरी रखना...)
बात निकली है तो दूर तक जानी चाहिये!!!
शेयर जरुर करें और लड़कियो को सम्मान दे!
Salute to all girls


चरणामृत का महत्व (Importance of Charnamrit)

चरणामृत का महत्व (Importance of Charnamrit)

   अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है.
      क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की. कि चरणामृतका क्या महत्व है. शास्त्रों में कहा गया है

"अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।। "

   "अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियोंका शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है। जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता"

    जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता, जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है. जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के
लोक नाप लिए और दूसरे मेंऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने
कमंडल में रख लिया.
     वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई ये शक्ति है भगवान के चरणों की. जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी. जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है -

   "चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी "

    धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है।
    कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया। चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है।

   चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है। आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए
कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए। ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि,
स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है। कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है। इसीलिए
चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन चरणामृत अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे
अपना हाथ सिर पर फेरते हैं। चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं?
               दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।
कहते हैं इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है। इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।

🌹🌟 भाव 🌟🌹

 🌹🌟 भाव 🌟🌹

      पुष्टिमार्ग नो मुख्य आधार भाव उपर छे . कोइ वस्तु स्वभावे साgरी के खोटी छेज नही. जेवो भाव एनी अंदर मुकीये तेवी ए वस्तु थइ जाय छे. जेनो भाव सुन्दर ते मानव सुन्दर . भाव वगर नुं जीवन
मृत जीवन जेवु छे. भाव थी प्रभु सांनिध्य अनुभवाय, भाव थी प्रभु अप्रगट होवा छतां प्रगट जेवा लागे छे.
भाव ए महामुली चीज छे ए वगर बधी क्रिया नकामी बधी सेवा नकामी बधां साधन नकामां, बधी पुजा नकामी,
जेणे रह्दयमां भाव राखी सेवा करता जाण्युं तेणे जीवन सार्थक कर्यु . भाव वगरनुं  कोइपण कार्य -सेवा प्रभु ने
संतुष्ट करी शके नही. भाव थी अर्पण करायेली सेवा प्रभु बहु मानीने स्वीकारी ले छें. 🌟


Saturday, June 28, 2014

श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी
बरनौ रघुबर बिमल जसु, जो दायकू फल चारि
बुध्दि हीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुध्दि विद्या देहु मोंही , हरहु कलेश विकार ||

चोपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ||
राम दूत अतुलित बल धामा |
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ||
महाबीर बिक्रम बजरंगी|
कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुण्डल कुंचित केसा ||
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे|
काँधे मूंज जनेऊ साजे||
संकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग बंदन||
विद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||
सुकसम रूप धरी सियहि दिखावा |
बिकट रूप धरी लंक जरावा ||
भीम रूप धरी असुर संहारे |
रामचंद्र के काज संवारे ||
लाय संजीवनी लखन जियाये |
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये ||
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावे |
अस कही श्रीपति कंठ लगावे ||
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीसा|
नारद सारद सहित अहीसा ||
जम कुबेर दिगपाल जहा ते|
कबि कोबिद कही सके कहा ते||
तुम उपकार सुग्रीवहीं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मंत्र विभिषण माना |
लंकेश्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र योजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जाणू ||
प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं|
जलधि लांघी गए अचरज नाहीं||
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आग्यां बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सरना |
तुम रक्षक काहू को डरना ||
आपन तेज सम्हारो आपे |
तीनों लोक हांक ते काँपे ||
भुत पिशाच निकट नहिं आवे |
महावीर जब नाम सुनावे ||
नासै रोग हरे सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट से हनुमान छुडावे |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै||
सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावे |
सोई अमित जीवन फल पावे ||
चारों जुग प्रताप तुम्हारा |
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||
साधु संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||
अष्ट सिद्धि नौनिधि के दाता |
अस बर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||
तुम्हरे भजन राम को पावे |
जनम जनम के दुःख बिस्रावे ||
अंत काल रघुबर पुर जाई |
जहा जनम हरी भक्त कहाई ||
और देवता चित्त न धरई |
हनुमत सेई सर्व सुख करई||
संकट कटे मिटे सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||
जय जय जय हनुमान गोसाई |
कृपा करहु गुरु देव के नाइ ||
जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटही बंदी महा सुख होई ||
जो यहे पढे हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसीदास सदा हरी चेरा |
कीजै नाथ हृदये मह डेरा ||
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रूप |
राम लखन सीता सहित , ह्रुदय बसहु सुर भूप ||

बर्फ़ का औषधीय प्रयोग

आज हम आपको कुछ अलग प्रकार का प्रयोग बता रहे हैं -- "बर्फ़ का औषधीय प्रयोग "
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१-गर्मी के मौसम में हिचकी की बीमारी पर रोगी के मुँह में बर्फ़ का टुकड़ा डालें और उसे चूसने दें | इससे हिचकी आना बंद हो जाती है |

२-चोट लगने पर यदि खून अधिक बहे तो बर्फ़ मलें ख़ून तुरंत रुक जाएगा |

३-बार-बार उल्टी होने पर बर्फ़ चूसने से उल्टी होना बंद हो जाती है | हैजे की उल्टियों में भी यह प्रयोग लाभदायक है ।

४-घमौरियों पर बर्फ़ का टुकड़ा मलने से ठंडक मिलती है तथा घमौरियाँ सूख जाती हैं |

भिंडी -

भिंडी -


              भिंडी का प्रयोग रूप में लगभग पूरे भारतवर्ष में किया जाता है | यह बहुत ही पौष्टिक सब्जी होती है जिसमें फाइबर 

मात्रा में होता है | 



                 भिन्डी में कैल्शियम,फॉस्फोरस,पोटैशियम,लौह,तांबा,सोडियम,गंधक,प्रोटीन,आयोडीन,विटामिन A,C तथा B-

कॉम्प्लेक्स आदि तत्व पाये जाते हैं | इसमें प्रोटीन सबसे अधिक मात्रा में होता है |



विभिन्न रोगों का भिंडी से उपचार -

    १- भिंडी की सब्जी खाने से पेशाब की जलन दूर होती है तथा इसके सेवन से पेशाब साफ़ और खुलकर आता है |

   २- भिंडी के पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं |

   ३- भिंडी की सब्जी बनाकर खाने से पेचिश में लाभ होता है |

   ४- भिंडी की जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ होता है |

गुरु महिमा By Atul Dakshini



गुरु महिमा 



राम कृष्ण से कौन बडा, तिन्ह ने भि गुरु किन्ह ।

तीन लोक के है धनी, गुरु आगे आधीन ॥

                द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण अवतरित हुए एवं कंस का विनाश हो चुका, तब श्री कृष्ण शास्त्रोक्त विधि से हाथ मे समिधा लेकर और इन्द्रियों को वश में रख कर गुरुवर संदीपनि के आश्रम में गये। वहा वे भक्तिपूर्वक गुरु की सेवा करने लगे । गुरु आश्रम में सेवा करते हुए, गुरु संदीपनि से भगवान श्री कृष्ण ने वेद-वेदांग, उपनिषद, मीमांसादि षडदर्शन, अस्त्र-शस्त्रविद्या, धर्मशास्त्र एवं राजनीति आदि की शिक्षा प्राप्त की । प्रखर बुद्धि के कारण उन्होने गुरु के एक बार कहने मात्र से ही सब सिख लिया । विष्णुपुराण के मत से चौसठ दिन में ही श्री कृष्ण ने सभी चौसठो कलाए सीख ली ।

      जब अध्ययन पूर्ण हुआ, तब श्री कृष्ण ने गुरु से दक्षिणा के लिये प्रार्थना की: ” गुरुदेव! आज्ञा कीजिए, मैं आपकी क्या सेवा करू ?”

   गुरु: “कोई आवश्यकता नही है ।”

  श्री कृष्ण: ” आपको तो कुछ नही चाहिये, किन्तु हमे दिये बिना चैन नही पडेगा । कुछ तो आज्ञा करे ।

        गुरु: “अच्छा जाओ, अपनी माता से पूछ लो । श्री कृष्ण गुरु-पत्नी के पास गये एवं बोले: “माँ ! कोई सेवा हो तो बताइये ।” गुरु पत्नि भी जानती थी कि श्री कृष्ण कोई साधारण मानव नही बल्कि स्वयं भगवान है, अतः वे बोली : “मेरा पुत्र प्रभाष क्षेत्र में मर गया है । उसे लाकर दे दो ताकि मै उसे पयपान करा सकू ।”

    श्री कृष्ण :” जो आज्ञा ।”

          श्री कृष्ण रथ पर सवार होकर प्रभाष क्षेत्र पहुचे और वहां कुछ देर ठहरे । समुद्र ने उन्हे परमेश्वर जानकर उनकी यथायोग्य पूजा की ।

श्री  कृष्ण बोले: “तुमने अपनी बड़ी बड़ी लहरॊ से हमारे गुरुपुत्र को हर लिया था । अब उसे शीघ्र लौटा दो ।”

             समुद्र: ” मैने बालक को नही हरा है, मेरे भीतर पान्चजन्य नामक एक बड़ा दैत्य शंख रूप मे रहता है, निःसन्देह उसीने आपके गुरुपुत्र का हरण किया है ।”

                   श्री कृष्ण ने तत्काल जल के भीतर घुसकर उस दैत्य को मार डाला, पर उसके पेट में गुरुपुत्र नही मिला । तब उस्के शरीर से पान्चजन्य शंख लेकर श्री कृष्ण जल से बाहर आये एवं यमराज की संयमनी पुरी में गये । वहाँ भगवान ने उस शंख को बजाया । कहते है कि उस ध्वनि को सुन कर नारकीय जीवों के पाप नष्ट हो जाने से वे सब वैकुंठ पहुँच गये । यमराज ने बड़ी भक्ति के साथ श्री कृष्ण की पूजा की और प्रार्थना करते हुए कहा: “हे लीलापुरुषोत्तम ! मै आपकी क्या सेवा करुँ?”

              श्री कृष्ण :” तुम तो नही पर तुम्हारे दूत, कर्मवश हमारे गुरुपुत्र को यहाँ ले आये है। उसे मेरी आज्ञा से वापस दे दो । ‘तथास्तु’ कहकर यमराज उस बालक को ले आये । श्री कृष्ण ने गुरुपुत्र को, जैसा वह मरा था वैसा ही उसका शरीर बनाकर, समुद्र से लाये हुए रत्नादि के साथ गुरुचरणों में अर्पित कर के कहा, “गुरुदेव ! और भी जो कुछ आप चाहे, आज्ञा करे ।”

              गुरुदेव : “वत्स ! तुमने गुरुदक्षिणा भली प्रकार से संपन्न कर दी । तुम्हारे जैसे शिष्य से गुरु की कौन सी कामना अवशेष रह सकती है ? वीर अब तुम अपने घर जाओ । तुम्हारी कीर्ति श्रोताओ को पवित्र करे और तुम्हारे पड़े हुए वेद नित्य उपस्थित और श्रवण रहकर इस लोक एवं परलोक में तुम्हारे अभिष्ट फल को देने मे समर्थ हो। गुरुसेवा का कितना सुन्दर आदर्श प्रस्तुत किया है श्री कृष्ण ने ! थे तो भगवान, फिर भी गुरु की सेवा उन्होने स्वयं की है ।

                 सतशिष्यों को पता होता है कि गुरु की एक छोटी सी सेवा करने से सकामता निष्कामता में बदलने लगती है, खिन्न ह्रदय आनन्दित हो उठता है, सुखा ह्रदय भक्ति रस से सराबोर हो उठता है । गुरुसेवा में क्या आनन्द आता है, यह तो किसी सतशिष्य से ही पूछकर देखे ।

ATUL BHAI भाव-विचार


।।भाव-विचार।।

                              CHERISHING AND CHANTING WITHIN SOUNDS ALIKE,BUT SIGNIFICANTLY DIFFERENT...CHANTING IS AN ACTION WHILE CHERISHING IS LIVING IN ACTION.... WHICH IS ONLY POSSIBLE IN "PUSHTI MARG"

                अंतररमन और अंतरमनन सुनने में एक ही जैसे लगते हैं किन्तु दोनों आपस में विलोम ही हैं...अंतरमनन प्रभु का अह्रानिश ध्यान करना है जबकि अंतररमन उनके ध्यान में ही जीना है जो कि केवल 'पुष्टिमार्ग' में ही सम्भव है।।



               कहानी 

एक काफिला सफ़र के दौरान अँधेरी सुरंग से गुजर रहा था.. उनके पैरों में कंकरिया चुभी, कुछ लोगों ने इस ख्याल से कि किसी और को ना चुभ जाये, नेकी की खातिर उठाकर जेब में रख ली..!

कुछ ने ज्यादा उठाई, कुछ ने कम..

जब अँधेरी सुरंग से बाहर आये तो देखा वो हीरे थे..!!

जिन्होंने कम उठाये वो पछताए कि ज्यादा क्यों नहीं उठाए..?
जिन्होंने नहीं उठाए वो और पछताए..!

दुनिया में जिन्दगी की मिसाल इस अँधेरी सुरंग जैसी है और नेकी यहाँ कंकरियों की मानिंद है..!

इस जिंदगी में जो नेकी की वो आखिर में हीरे की तरह कीमती होगी और इन्सान तरसेगा कि और ज्यादा क्यों ना की..

नजर अंदाज करों उन लोगों को जो आपकी पीठ पीछे आपके बारे में बातें करते है, क्योंकि वे उसी जगह है, जहाँ वे रहने के लायक है...
'आपके पीछे..!!'

ATUL BHAI: भाव

ATUL BHAI:  भाव 

पुष्टिमार्ग नो मुख्य आधार भाव उपर छे . कोइ वस्तु स्वभावे सागरी के खोटी छेज नही. जेवो भाव एनी अंदर
मुकीये तेवी ए वस्तु थइ जाय छे. जेनो भाव सुन्दर ते मानव सुन्दर . भाव वगर नुं जीवन मृत जीवन जेवु छे. भाव थी
प्रभु सांनिध्य अनुभवाय , भाव थी प्रभु अप्रगट होवा छतां प्रगट जेवा लागे छे. भाव ए महामुली चीज छे ए वगर बधी क्रिया नकामी बधी सेवा नकामी बधां साधन नकामां, बधी पुजा नकामी, जेणे रह्दयमां भाव राखी सेवा करता जाण्युं तेणे जीवन
सार्थक कर्यु . भाव वगरनुं कोइपण कार्य -सेवा प्रभु ने संतुष्ट करी शके नही. भाव थी अर्पण करायेली सेवा प्रभु बहु
मानीने स्वीकारी ले छें. 

Aaj Ka bhagwat Chintan 28-6-2014 by Atul Dakshini

राधे राधे- आज का भगवद चिंतन  27-6-2014
 From London
      एक क्षण के लिए भी कर्महीन जीवन मत जियो कुछ कर्म अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए करो। कुछ कर्म अपनों को आगे बढ़ाने के लिए करो। और कुछ कर्म समाज के लिए करो, ये कर्म सत्कर्म कहलाते हैं।

      किसी-किसी दिन कर्महीन रहने पर तुम्हें पता है कि कितनी नई चीजें सृष्टि में आगे बढ़ जाती है। कई नए बीज मिटटी में मिलकर अंकुरित होकर पेड़ बनने की और बढ़ जाते हैं। कई फूल काँटों के बीच रहकर प्रकृति को सौन्दर्य युक्त बनाने के लिए खिल पड़ते है।
     कई परमार्थी चित्त आत्म- प्रेरित होकर स्वार्थ की बेड़ियों को तोड़कर परमार्थ पर चल पड़े होंगे। कई हृदयों के तारों पर ईस्वर भक्ति का संगीत झंकृत हो चुका होगा। कई मानव देव बनने की राह पर चल पड़े होंगे।
  मै कई बार सोचता हूँ कि आपने और मैंने जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन और क्षण फिर नष्ट कर दिया। आलस्य की शैया पर पड़े-पड़े समय को आज अपने हाथों से और आपके हाथों से फिर निकलता हुआ देख रहा हूँ।
 संजीव कृष्ण ठाकुर जी 

Thursday, June 26, 2014

Aaj Ka Bhagwat Chintan by Atul Dakshini 26-6-2014

निरन्तर भक्ति भावसे ही गोविन्द कीप्राप्ति होती है।
जो भक्त निरन्तर गोपी भावसे अपने गोविन्द को भजतेहैं, उस पर भगवान श्री हरि अवश्य ही कृपा करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने भी स्वयं गीता में कहा है।

"तेशांसततयुक्तां भजतां प्रीतिपूर्वकं,
ददामि बुद्धि योगंतं येन मामुपयान्तिते"

अर्थात् जो निरन्तर मेरे ध्यान में लगे हुए प्रेम पूर्वक मेरा भजन करते हैं, उन्हें मैं तत्वज्ञान रूप योग देता हूं, जिससे वे मेरे कोही प्राप्त होते हैं.
गोपियां भी तो यही भाव रखती थीं।
गोपी किसी स्त्री जाति को नहीं कहते बल्कि गोपी तो एक भाव का नाम है।
गोपी काअर्थ है 'गौ'अर्थात् इन्द्रिय और 'पी'अर्थात् पीना।

गोभिःइन्द्रियैः कृश्णरसं विपति इतिगोपी।

अर्थात् : जो प्रत्येक इन्द्रिय से हर परिस्थिति में उठते बैठते, चलते फिरतेश्रीकृष्ण रस कापानकरें।

श्रीकृष्ण काही चिन्तन करें वह गोपी हैं.
बृजमण्डल की जितनी भी गोपियां थीं।
वो निरन्तर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में ही अपना ध्यान लगाती थीं।

गोपी के आटे में कृष्ण
गोपी के माखनमें कृष्ण
गोपी के हर काममें कृष्ण

मानसवाचा कर्मणा
हर जगह कृष्ण-कृष्णे - कृष्णत रहते थे, और इसी भाव ने उन्हें गोपी बनाया।
यदि हम भीअपने कन्हैया को गोपी भाव से याद करेंगे, तो वो प्यारा सा कन्हैया आज भी हमारे आपके बीचमें प्रकट हो सकताहै.



जौ (BARLEY)

जौ (BARLEY)
                भारतवर्ष में अति प्राचीन काल से जौ का प्रयोग किया जाता रहा है | हमारे ऋषि मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था | प्राचीन वैदिक काल 
तथा आयुर्वेदीय निघण्टुओं एवं संहिताओं में इसका वर्णन प्राप्त होता है | भावप्रकाश निघण्टुमें तीन प्रकार के भेदों का वर्णन प्राप्त होता है | 

                 स्वाद एवं आकृति के दृष्टिकोण से जौ,गेहूँ से भिन्न दिखाई पड़ते हैं किन्तु यह गेहूँ की जाति का ही अन्न है | अगर गुण की दृष्टी से देखा 
जाए तो जौ गेहूं की अपेक्षा हल्का होता है | जौ को भूनकर,पीसकर उसका सत्तू बनता है | जौ में लैक्टिक एसिड,सैलिसिलिक एसिड,फॉस्फोरिक 
एसिड,पोटैशियम और कैल्शियम होता है | 

जौ के विभिन्न औषधीय उपयोग -
१- एक लीटर पानी में एक कप जौ को उबालकर इस पानी को ठंडा करके छानकर पीने से शरीर की की सूजन ख़त्म हो जाती है |
२- जौ का सत्तू खाने या पीने से अधिक गर्मी में शरीर को ठंडक मिलती है |
३- जौ को बारीक पीस कर तिल के तेल में मिलाकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से लाभ होता है |
४- जौ का आटा ५० ग्राम और चने का आटा १० ग्राम मिलाकर रोटी बनाएं | इस आटे की रोटी से मधुहेह नियंत्रित हो जाता है |
५- उबले हुए जौ का पानी प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से शरीर में खून बढ़ता है | जौ का पानी गर्मियों में पीने से अधिक लाभ मिलता है |

घमौरियां या प्रिकली हीट

घमौरियां या प्रिकली हीट
                                                             गर्मी के मौसम में पसीना आना स्वाभाविक है | इस पसीने को यदि साफ़ न किया जाए तो यह शरीर में ही 
सूख जाता है और इसकी वजह से शरीर में छोटे -छोटे दाने निकल आते हैं जिन्हें हम घमौरियां या प्रिकली हीट कहते हैं | घमौरी एक प्रकार का चर्म 
रोग है जो गर्मियों तथा बरसात में त्वचा पर हो जाता है | इसमें त्वचा पर छोटे -छोटे दाने निकल आते हैं ,जिनमें हर समय खुजली होती रहती है | 
घमौरियों से निजात पाने के लिए हम आपको कुछ सरल उपाय बताते हैं -

१- मेंहदी के पत्तों को पीसकर नहाने के पानी में मिला लें | इस पानी से नहाने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं |
२- देसी घी की पूरे शरीर पर मालिश करने से घमौरियां मिटती हैं |
३- शरीर पर मुल्तानी मिटटी का लेप करने से घमौरियां मिटती हैं और इनसे होने वाली जलन और खुजली में भी राहत मिलती है |
४- नारियल के तेल में कपूर मिला लें | इस तेल से रोज़ पूरे शरीर की मालिश करने से घमौरियां दूर हो जाती हैं |
५- नीम की पत्तियां पानी में उबाल लें | इस पानी से स्नान करने से घमौरियां मिटती हैं |
६- तुलसी की लकड़ी पीस लें | इसे पानी में मिलकर शरीर पर मलने से घमौरियां समाप्त हो जाती हैं |

टमाटर (रक्तवृन्ताक)

टमाटर मूलतः      उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्रों में पाया जाता है,परन्तु अब सर्वत्र भारत में इसकी खेती की जाती है |
टमाटर में कई प्रकार के पौष्टिक गुण पाये जाते हैं | टमाटर में पाये जाने वाले विटामिन गर्म करने से ख़त्म नहीं होते हैं |
टमाटर में विटामिन A ,B और C तथा B काम्प्लेक्स पाया जाता है | २०० ग्राम टमाटर से लगभग ४० कैलोरी ऊर्जा शरीर को प्राप्त होती है |
टमाटर में कैल्शियम भी अन्य फल सब्ज़ियों की तुलना में अधिक पाया जाता है | दांतों व हड्डियों की कमज़ोरी दूर करने के लिए टमाटर का सेवन
बहुत उपयोगी है | इसमें लौह,पोटाश,चूना,लवण तथा मैग्नीस जैसे तत्व भी होते हैं इसलिए इसके सेवन से शरीर में रक्त की वृद्धि होती है |
टमाटर लीवर,गुर्दा और अन्य रोगों को ठीक करने में लाभकारी है | 


टमाटर के कुछ औषधीय प्रयोग -

१- मधुमेह की बीमारी में टमाटर का सेवन अति लाभकारी है | इसके सेवन से रोगी के मूत्र में शक्कर आना धीरे-धीरे कम हो जाता है |
२- टमाटर के सेवन से चिड़चिड़ापन और मानसिक कमज़ोरी दूर होती है | यह मानसिक थकान को दूर करके मस्तिष्क को संतुलित बनाए रखता है |
३- प्रतिदिन लगभग २०० ग्राम टमाटर के सेवन से रतौंधी और अल्पदृष्टि (आँखों से कम दिखाई देना) में लाभ होता है | इस प्रयोग से पेट के कीड़े भी मर जाते हैं |
४- दिन में दो बार टमाटर या उसके रस के सेवन से कब्ज़ ख़त्म होती है तथा आमाशय व आँतों की सफाई हो जाती है |
५- जिन लोगों को मुँह में बार-बार छाले होते हों उन्हें टमाटर का सेवन अधिक करना चाहिए | टमाटर के रस में पानी मिलाकर कुल्ला करें,इससे भी मुँह के छाले ख़त्म होते हैं|
६- अगर चेहरे पर काले दाग या धब्बे हों तो टमाटर के रस में रुई भिगोकर लगाने से काले दाग-धब्बे ख़त्म हो जाते हैं |
टमाटर का उपयोग आमवात,अम्लपित्त,सूजन,संधिवात और पथरी के रोगियों को नहीं करना चाहिए,क्यूंकि यह उनके लिए हानिकारक होता है | मांसपेशियों में दर्द तथा शरीर में सूजन हो तो टमाटर नहीं खाना चाहिए |

OMKAR BHAJAN MANDAL Meeting

OMKAR BHAJAN MANDAL
               Meeting At 29th June 2014
Place                                       KanakShree Hall
                                                Shiv Sadan
                                                 Ashok Nagar
                                                  Kandivali East
                                                   Mumbai 400101

Agenda: Annual Function Of Omkar Bhajan Mandal

All Members are requested to make there presence compulsory and on time at 4 pm Sharp..

                                                                                                                Thanks
                                                                                                                Regards Omkar Bhajan Mandal

Wednesday, June 25, 2014

Suvichaar By Atul Dakshini




!"श्री गिरिराज धरण प्रभु हम तुम्हारी शरण।"!

सुशीलो मातृपुण्येन,
               पितृपुण्येन चातुरः ।
औदार्यं वंशपुण्येन,
       आत्मपुण्येन भाग्यवान ।।

         अर्थात् कोई भी संतान अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है, पिता के पुण्य से चतुर होता है, वंश के पुण्य से उदार होता है और अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वो भाग्यवान होता है, भाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म आवश्यक है ।

   भगवान को रहने के लिए जगहकी कमी थोड़े है ।
              लेकिन भक्त के मन में, हृदयमें रहने का मजा ही दूसरा है । इसलिए भगवान निर्मल मन वाले को तलासते रहते हैं ।जैसे कोई निर्मल मन मिला उसमें बस जाते हैं ।अतः भगवान को पाने के लिए हमें कुछ नहीं करना है।सिर्फ हमें अपने मन को निर्मल बना लेना है।सब छोड़कर हम अगर यह काम कर ले जाएँ तो भगवान हमें मिल जाएंगे। भगवान खुद कहते हैं- ‘निर्मल मन सो जन मोहि पावा । हमहिं कपट छलछिद्र नभावा’ ।


Tuesday, June 24, 2014

MY SELF

HI FRIENDS,
  this is nagesh sharma from Omkar Bhajan Mandal,
    Omkar Bhajan mandal Is the Place where We can do Sewa Karya For People, Animal, Nature and whatever Good things We Want We can Do Here.


      Omkar Bhajan Mandal में हम सब एक परिवार है इस बात को बताना जरुरी नहीं है मगर समझना बहुत ही जरुरी है क्योकि बहुत बार ऐसा होता है की हम कुए के मेंढक की तरह अपने आप को उस दायरे में सिमित कर लेते है और अपनी आखे बंद करके ये सोच लेते है की बस हमने हमारा कार्य कर लिया है और अब हमे इस दुनिया में इससे ज्यादा कुछ भी करने की जरुरत नहीं है!

     ज मैं इस जगह जो भी लिख रहा हूँ वह मेरी सोच है मेरा तरीका है मै इस ब्लॉग के जरिये अपनी सोच को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचना चाहता हूँ और यही मेरा ध्येय भी है और जरुरत भी!

     क्या आप जानते  है की हर बार जब हम ये सोचते है की आज मैं ऐसा करूँगा या आज मैं वैसा करूँगा, और जब हम उस कगार पे मतलब उस जगह पहुँचते है उसे करने के लिए तभी एकदम अचानक से वह चीज पूरी तरह से बदल जाती है!  ऐसा क्यों होता है?  आखिर ऐसी क्या गलती है या क्या तकलीफ होती है उस ऊपर वाले को की वह हमारी सोच अच्छी हो ख़राब हो कैसी भी हो जब हमें सबसे ज्यादा जरुरत हो तभी बिगड़ जाती है और हमपे मुसीबतो का पहाड़ तो यु टूटता है जैसे बीच समुन्दर में ज्वर भाटा के बीच में व्हेल मछली चारो तरफ से हमारे आस पास ही घूम रही हो की अगर हम हाथ पैर मार के निकले तो वह खा लेंगी नहीं निकले तो समुन्दर निगल लेगा! मै पूछता हूँ आखिर इंसान ऐसी स्थिति में क्या करे!

  क्यों ऊपर वाला हमे इतना मजबूर, असहाय, निराश, हताश और मायुश कर देता है की हम अपने आप को तबाही के कगार पे लाके खड़ा कर देते है और अगर वह से हमे साथ मिला तो हम दुबारा अपने आप को समाज में बना लेते है वरना ज़िन्दगी तो है ही खत्म होने के लिए! पर क्यों??? 

   गर हम देखे तो आज सिर्फ भारत की जनसँख्या तक़रीबन सवा अरब के ऊपर हो चली है जिसमे हम ये अंदाज लगाने से बिलकुल अनजान नहीं है की उनमे से कितने लोग इस सिचुएशन से गुजर रहे है! और कितने ऐसे है जिनको इनकी कोई फ़िक्र नहीं है और कितने ऐसे भी है जो इन लोगो के लिए कुछ करना चाहते है!

     ज जो भी इस दौर से गुज़र रहा है क्या उसे जीने का हक्क नहीं है, बड़े बड़े गुनाह करके आदमी पछतावा कर सकता है सुधर सकता है फिर से अपनी ज़िन्दगी में लौट सकता है पर वह लौटने वाला, वह सुधरने वाला हमेशा वैसा ही व्यक्ति होता है जिसके आगे पीछे उसे निकाल  के लाने वाले हो जो समृद्ध हो सुदृढ़ हो और संपत्तिवान हो!

   भगवन को याद करने में किसीकी भूल नहीं होती है यह बात चाहे कोई माने या न माने मगर सभी जानते है की चाहे नाश्तिक हो चाहे आस्तिक हो हर कोई उसे याद करता ही है भले कैसे भी याद करे!

  वाल्मीकि, रावण, और न जाने कौन कौन ऐसे उदहारण है जो उसे याद नहीं करते थे उससे नफरत करते थे मगर उनकी नफ़रत को उसने बदला उनका भला ही किया उन्हें सुधारा उनके लिए उसने एक दूत भेजा सलाहकार भेजा, रास्ता दिखाने वाला भेजा तो हमारी जनरेशन में ऐसा क्या हो गया है की उसको हमारी फ़िक्र ही नहीं रही, क्या हम उसके बच्चे नहीं है क्या हम उसकी रचना नहीं है हमने कौन सा गुनाह किया है!

         न सबका जवाब है एक जवाब नहीं सेकड़ो जवाब है उन धर्मगुरुओ के पास जिन्होने इसका पूरा बीड़ा उठाया हुआ है! और अपने काम को वह बखूबी कर रहे है! मगर हम लोगो में से कितने लोग उस जगह जाते है और जो जाते है उन्हें उनकी ज्यादा जरुरत है या उन्हें जिनके बारे में हम यहाँ बाते कर रहे है!  जी हां अगर उन लोगो की इसकी जरुरत है और हम ये बात जानते है तो वह लोग कैसे जायेंगे वहा, भगवत चिंतन, ध्यान, मनन, भजन, सत्संग का अर्थ कौन बताएगा उन लोगो को समाज के अन्धकार में पड़े उन लोगो को कौन निकलेगा बाहर आखिर कौन???     क्या इसका जवाब है हमारे पास? इस बात के लिए मेरे ख्याल से दोहरी भूमिका होगी., कुछ कहेंगे हां है कुछ कहेंगे नहीं है कोई कुछ कोई कुछ!!! मगर निष्कर्ष या कहे सच्चाई किसी के पास नहीं होगी और जिनके पास होगी वह इस चीज़ को करने से कतराएंगे! जी हां ये सच बात है और इस बात से आप चाहे न चाहे अच्छी तरह जानते है की में गलत नहीं बोल रहा हूँ



           स बात को मई आगे भी बढ़ाना चाहता हूँ इसके बारे में सोच बहुत ज्यादा बड़ी है मगर समय और साधन की कमी इसीलिए इसके आगे की सोच हम कुछ देर बाद कंटिन्यू करेंगे
   धन्यवाद

सभी के मार्गदर्शन और विचारो को आमंत्रित किया जाता है
नागेश शर्मा




आज का भगवद चिन्तन, 24-6-2014 by atul dakshini

राधे राधे, आज का भगवद चिन्तन, 24-6-2014

 जिन्दगी में मन लगाना है तो प्रभु में ही लगाना। अन्यथा तुम अपूर्ण और अधूरे ही जियोगे और अधूरे ही जाओगे। ऐसा नहीं है कि आदमी पूर्ण होकर नहीं जी सकता। जी सकता है पर वह पूर्णता प्राप्त तो परमात्मा के संग से ही होगी।
 परमात्मा के संग होने से असंभव भी संभव हो जाता है और संग ना होने से संभव भी असंभव हो जाता है। अर्जुन अकेला था तो उससे युद्ध में खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था। जब श्री कृष्ण के संग होने का अहसास हुआ तो पूरा मैदान जीत लिया।
 संग होने का अर्थ 24 घंटे राम-राम रटना या मंदिर में जाना नहीं है। यह तो सारी दुनिया कर रही है। कौन आनन्द और पूर्णता को उपलब्ध हुआ ? भीतर ह्रदय में यह बैठ जाना कि श्री हरि ही मेरे अपने हैं संसार में , बस। अर्जुन की तरह सारथि बनालो श्रीकृष्ण को , अपने आप मंजिल तक ले जायेंगे।
                     संजीव कृष्ण ठाकुर जी

कमर दर्द

कमर दर्द -

प्रायः कमर दर्द से सभी का सामना होता है | आजकल की व्यस्त जीवन शैली में कई बार शरीर में कमर दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है | यह अधिकतर उन लोगों में होता है जो अधिक समय तक खड़े होकर,बैठकर या गलत तरीके से बैठकर और लेटकर कार्य करते हैं | अधिक मुलायम गद्दे पर बैठने और सोने से भी कमर दर्द हो जाता है | कई बार किसी कारण से कमर की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न हो जाता है जिसकी वजह से कमर में दर्द होता है जो बहुत कष्टपूर्ण होता है | कमर दर्द के और भी कारण हो सकते हैं जैसे ठण्ड लगने से,पानी में भीगने से अथवा और किसी रोग की वजह से |
कमर दर्द का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -

१- सौंठ के चूर्ण को अलसी के तेल में पका लें | इस तेल से कमर की मालिश करने से कमर दर्द में लाभ होता है |
२- अजवायन को एक पोटली में बाँध लें | फिर इस पोटली को तवे पर गर्म करें तथा इससे कमर की सिकाई करें ,लाभ होगा |
३- आधा चम्मच सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है |
४- लगभग ५ ग्राम सौंफ,१० ग्राम तेजपात और दस ग्राम अजवायन को एक लीटर पानी में उबालें | जब १०० ग्राम शेष रह जाए तब इसे ठंडा करके पी लें | इससे ठण्ड के कारण उत्पन्न हुए कमर दर्द में राहत मिलती है |
५- अरण्ड के पत्ते पर एक तरफ सरसों का तेल लगाकर तवे पर हल्का सा सेंक लें | फिर इसे तेल की तरफ से कमर पर बाँध लें | यह प्रयोग रात्रि में सोते समय करना चाहिए | सुबह तक कमर दर्द में बहुत आराम मिलता है |
६- आधा लीटर सरसों के तेल में १२५ गर्म लहसुन की पोथियों को कूटकर डालें | फिर उसे लहसुन के जलने तक गर्म करें और ठंडा होने पर छानकर शीशी में भर लें| इस तेल की मालिश से कमर दर्द मिट जाता है |

Posts By Atul Dakshini

ll हे श्री वल्लभ प्रभु !
सात्विक, राजस, तामस, लौकिक, अलौकिक, सर्वस्व आपके चरण कमल में समर्पित हे l
में जो भी बोलूं, करूं, सोचूं सब आपकी इच्छा होय l मे दास हु, में आपकl हूँ l
मोकु अपनी चरणारविन्द
की शरण में रखियो प्रभु ll


सिंहनंद ना एक क्षत्रानी केटलिक वार क्षत्रानी पासे पैसा नो संकोच रेहतो. सामग्री बनाववा खांड,
घी लाववा पैसा नहोय त्यारे ते रोटी घी थी चोपडी शिका मा ढाकी राखती. क्यारेक रात मा श्री ठाकुरजी
क्षत्रानी ने जगाडी ने आग्या करता 'मा मने भूख लागी छे त्यारे क्षत्रानी केहती , लाला ! आजे घरमा कई पकवान नथी केवल रोटी छे. आ साम्भडी श्री ठाकुरजी आग्या करता "मैया रोटी ऊपर दालेलि खांड लगावी तेनु बिडु बनावी श्री ठाकुरजी ने श्रीहस्त मा आपती. श्री ठाकुरजी नाना दांत थी रोटी नो टुकडो करी आरोगता.
पछी क्षत्रानी जल अरोगावी श्री ठाकुरजीने शयन करावती. पण मन मा भारे खेद रेहतो के आजे श्री ठाकुरजी माटे कोई मिठाई बनी नथी. एक वखत तेने एवो विचार आव्यो के मोदी नी दुकाने थी खांड घी उधार लावी अने
श्री ठाकुरजी माटे सामग्री बनावू. रात्रे श्री ठाकुरजी सुकी रोटी आरोगे छे एथि मने घणु दुख थाय छे. बिजा दिवसे ते पच्चीस पैसा ना खांड घी अने मेन्दो उधार लावी तेमा थी चार प्रकार नि सामग्री बनावी राखी, रात्रे
श्री ठाकुरजी ए आग्या करी' मने भूख लागी छे' क्षत्रानीए तेसामग्री श्री प्रभु सन्मुख धरि त्यारे श्री प्रभुए पुछ्यु के आ बधु क्यांथी आव्यु ? तारी पासे द्र्व्य तो हतु नही ? 'लाला, मारा घर मा कोई कमानार नथी अने मारी पासे द्रव्य पण नथी आप ने परिश्रम थाय छे माटे उधार सामग्री लावी छु बे चार दिवस रेन्तियो चलाविश एट्ले बधु देवु चुकवाय जसे. 'मैया, देवु करी ने सामग्री केम बनावी ? देवु चुकवाय नही त्यारे मने घनो क्लेश थाय छे मने क्लेश रुचतो नथी मने तो तारी रोटी रुचे छे माटे तारी पासे पैसा होय तो ज मिठाई बनावजे अने नो होय
तो रोटीज धरजे मने मिठाई करता पण तारी रोटी वधारे मीठी लागे छे. आम त्रिभुवन नायक श्री ठाकुरजी ने स्वसेव्य करी जीवनभर प्रभु ने लाडलाडाव्या अने श्री ठाकुरजी पण क्षत्रानी ने
वात्सल्यभाव नो अद्भुत आनंद आप्यो...... आवा अद्भुत भगवद भक्त ना चरण कमल
मा कोटि कोटि दंडवत....... देवु करीने श्री ठाकुरजी नी सेवा न करवी श्री हरि साधन सामग्री ना भुख्या नथी तेओ तो भक्तना भाव ना भुख्या छे. जे समये आपनी पासे जे कई होय ते बधु श्रीठाकुरजी ने आंगिकार काराववु पाछि एवि दीनता राखवी के माराथी कई बनतु नथी तेनो ताप क्लेश करवो तेनु नाम नि:साधानता छे. पुश्टिमार्ग मा आ नि:साधानता फलरुप छे.