ATUL BHAI: राधे राधे- आज का भगवद चिन्तन - 29-6-2014
From London
भोगी के लिए वन में भी भय है और योगी के लिए घर में भी बन जैसा आनंद है। जिसका मन विकार मुक्त हो चुका है वो हर जगह , हर घड़ी आनन्द अनुभव करता है। जैसे पतंग उड़ाने वाला आकाश में बहुत ऊपर तक पतंग ले जाता है पर डोरी अपने हाथ में रखता है
थोड़ी सी भी उलझने पर पतंग को वापिस अपने पास खींच लेता है। भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को गीता में कहते हैं कि वैसे ही जो पुरुष विवेक रुपी डोर से इन्द्रियों रुपी पतंग को वश में करके अनासक्त होकर कर्म करता है, वह कभी भी नहीं उलझता।
आसक्ति भाव से किये जाने वाले कर्म ही दुःख का कारण बनते हैं। दुःख वाहर से प्रगट नहीं होता , वह भीतर से प्रगट होता है। समस्या वाहर नहीं भीतर है। समाधान भीतर ही मिलेगा, जब भी मिलेगा। अपने मन को समझाकर ही सुखी हुआ जा सकता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा की बधाई
!! संजीव कृष्ण ठाकुर जी !!
From London
भोगी के लिए वन में भी भय है और योगी के लिए घर में भी बन जैसा आनंद है। जिसका मन विकार मुक्त हो चुका है वो हर जगह , हर घड़ी आनन्द अनुभव करता है। जैसे पतंग उड़ाने वाला आकाश में बहुत ऊपर तक पतंग ले जाता है पर डोरी अपने हाथ में रखता है
थोड़ी सी भी उलझने पर पतंग को वापिस अपने पास खींच लेता है। भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को गीता में कहते हैं कि वैसे ही जो पुरुष विवेक रुपी डोर से इन्द्रियों रुपी पतंग को वश में करके अनासक्त होकर कर्म करता है, वह कभी भी नहीं उलझता।
आसक्ति भाव से किये जाने वाले कर्म ही दुःख का कारण बनते हैं। दुःख वाहर से प्रगट नहीं होता , वह भीतर से प्रगट होता है। समस्या वाहर नहीं भीतर है। समाधान भीतर ही मिलेगा, जब भी मिलेगा। अपने मन को समझाकर ही सुखी हुआ जा सकता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा की बधाई
!! संजीव कृष्ण ठाकुर जी !!
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