सुरदासजी को सुंदर प्रसंग :
सुरदासजी अकेले होने से अपनी सहायता मे गोपाल नामके एक व्रजवासी को रख्यो हतो, एक दिन सुरदासजी प्रसाद ग्रहण करने बैठे तब गोपाल से कही "भैया जल कि लोटी भरी के राखीओ" गोपाल उस समय बाहर जा रहा था, पोतना करने के लिये गोबर लाना था इस लिये उसे लग्यो के मे वेगिहि जा कर आउंगो और वापस आकर लोटी भरुंगो पर वह भूल गयो....और जल की लोटी न भरी यहां प्रसाद ग्रहण करते समय सुरदासजी को प्यास लगी आसपास हाथ फिरायो पर लोटी न मिली ?
जन्मांध होने से आप व्याकुल हो उठे और गोपाल गोपाल के नाम कि पुकार लगाई, आप का कन्ठ सुकने लगो श्वास भी अटक गयो आकुल व्याकुल हो उठे!! इतनेमे समीप मे किसी ने जल को पात्र रख्यो होय ऐसो आवाज आयो! लगो के गोपाल रख कर चलो गयो !! आप ने जल को पात्र लियो और जल पान कियो, व्याकुलता दूर भयी, इस और गोपाल को याद आयो के मैने तो जल की लोटी भरी ही नही ! मन ही मन खेद करन लग्यो और शिघ्रता सु आयो और कहने लगो बाबा मोरी भुल हो गयी आप को जल बिना बहोत परिश्रम हुओ !! सुरदासजी बोले गोपाल तूने आज लोटी के बदले झारी रखी हती वामे से मैने आज जलपान कियो ! गोपालने वहां देखा तो सुंदर सोना कि झारी हती ! यह तो श्रीनाथजी बावा कि सोना कि झारीजी हती और विचार्यो के मेरी गैरहाजरी मे कौन व्यक्ति यहां रख कर गया होगा?? सुरदासजी त्वरित समझ गये और बोले भाई जरुर श्रीजी ने ही मेरे जैसे पामर जीव के लिये परिश्रम लिया है !! बहोत अनुचित हुआ ? गोपाल मैने तो तोकु साद दियो हतो पर मेरे लिये साक्षात गोपाल-श्रीनाथजी बावा परिश्रम लेकर वेगि सु आये -प्रभु को श्रम कराने को अपराध हम से हुओ है आगे से पुन: ऐसो अपराध न करुंगो !! प्रभु की कैसी भक्त वत्सलता भक्त को दुखी देख प्रभु दुखी होय, भग्वदीय और भगवान कि यह तन्मयता धन्य है भक्तिमार्ग कि यही तो सर्वोच्च अवस्था है!
BY ATUL DAKSHINI
सुरदासजी अकेले होने से अपनी सहायता मे गोपाल नामके एक व्रजवासी को रख्यो हतो, एक दिन सुरदासजी प्रसाद ग्रहण करने बैठे तब गोपाल से कही "भैया जल कि लोटी भरी के राखीओ" गोपाल उस समय बाहर जा रहा था, पोतना करने के लिये गोबर लाना था इस लिये उसे लग्यो के मे वेगिहि जा कर आउंगो और वापस आकर लोटी भरुंगो पर वह भूल गयो....और जल की लोटी न भरी यहां प्रसाद ग्रहण करते समय सुरदासजी को प्यास लगी आसपास हाथ फिरायो पर लोटी न मिली ?
जन्मांध होने से आप व्याकुल हो उठे और गोपाल गोपाल के नाम कि पुकार लगाई, आप का कन्ठ सुकने लगो श्वास भी अटक गयो आकुल व्याकुल हो उठे!! इतनेमे समीप मे किसी ने जल को पात्र रख्यो होय ऐसो आवाज आयो! लगो के गोपाल रख कर चलो गयो !! आप ने जल को पात्र लियो और जल पान कियो, व्याकुलता दूर भयी, इस और गोपाल को याद आयो के मैने तो जल की लोटी भरी ही नही ! मन ही मन खेद करन लग्यो और शिघ्रता सु आयो और कहने लगो बाबा मोरी भुल हो गयी आप को जल बिना बहोत परिश्रम हुओ !! सुरदासजी बोले गोपाल तूने आज लोटी के बदले झारी रखी हती वामे से मैने आज जलपान कियो ! गोपालने वहां देखा तो सुंदर सोना कि झारी हती ! यह तो श्रीनाथजी बावा कि सोना कि झारीजी हती और विचार्यो के मेरी गैरहाजरी मे कौन व्यक्ति यहां रख कर गया होगा?? सुरदासजी त्वरित समझ गये और बोले भाई जरुर श्रीजी ने ही मेरे जैसे पामर जीव के लिये परिश्रम लिया है !! बहोत अनुचित हुआ ? गोपाल मैने तो तोकु साद दियो हतो पर मेरे लिये साक्षात गोपाल-श्रीनाथजी बावा परिश्रम लेकर वेगि सु आये -प्रभु को श्रम कराने को अपराध हम से हुओ है आगे से पुन: ऐसो अपराध न करुंगो !! प्रभु की कैसी भक्त वत्सलता भक्त को दुखी देख प्रभु दुखी होय, भग्वदीय और भगवान कि यह तन्मयता धन्य है भक्तिमार्ग कि यही तो सर्वोच्च अवस्था है!
BY ATUL DAKSHINI
No comments:
Post a Comment