Friday, June 20, 2014

❇ जय गौर हरि ❇ by Atul Dakshini


                    एक लड़की थी जो श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी। बचपन से ही श्रीकृष्ण का भजन करती थी। भक्ति करते करते बड़ी हो गई। भगवान की कृपा से उसका विवाह भी श्रीधाम वृन्दावन में किसी अच्छे घर में हो गया। गाँव के होने के कारण विवाह के बाद मायके चली आई।

                    और वो दिन भी आया जब उसका पति उसे लेने उसके मायके आया। अपने पति के साथ वह वृन्दावन आ गई। पहुँचते-पहुँचते उन्हें शाम हो गई। पति वृन्दावन में यमुना किनारे रुककर कहने लगा - देखो ! मैं यमुना जी में स्नान करके अभी आता हूँ। यहीं सामने ही हूँ , कुछ लगे तो मुझे आवाज़ दे देना। इतना कहकर पति चला गया।

                    उस लड़की ने अब एक हाथ लम्बा घुंघट निकाल रखा है , क्यों कि गाँव है , ससुराल है , वहीँ बैठ गई और विचार करने लगी कि - देखो ! ठाकुरजी की कितनी कृपा है। उन्हें मैंने बचपन से भजा और उनकी कृपा से मेरा विवाह भी श्री वृन्दावन में हो गया। मैं इतने वर्षों से श्रीठाकुर जी को मानती हूँ परन्तु अब तक उनसे कोई रिश्ता नहीं जोड़ा। फिर सोचती है - ठाकुरजी की उम्र क्या होगी ?

                    उसने सोचा ठाकुर जी लगभग 16 वर्ष के होंगे , मेरे पति 20 वर्ष के हैं , उनसे थोड़े से छोटे हैं और मेरे देवर की तरह। तो आज से ठाकुरजी मेरे देवर हुए। मन ही मन ठाकुर जी से कहने लगी - देखो ! ठाकुरजी , आज से मैं तुम्हारी भाभी और तुम मेरे देवर हो गए। अब वो समय आएगा जब तुम मुझे भाभी भाभी कहकर पुकारोगे।

                    इतना सोच ही रही थी तभी एक 10-12 वर्ष का बालक आया और उस लड़की से बोला - भाभी भाभी ! लड़की अचानक अपने भाव से बाहर आई और सोचने लगी कि वृन्दावन में तो मैं नई हूँ , ये भाभी कहकर कौन बुला रहा है। गाँव का कोई बड़ा बूढ़ा न देख ले इसलिय घुंघट उठाकर नहीं देखा। अब वह बालक बार बार कहता पर वह उत्तर न देती। बालक पास आया और बोला -

                भाभी ! नेक अपना चेहरा तो देखाय दे,
                    अब वह सोचने लगी , अरे ये बालक तो बड़ी जिद कर रहा है इसलिए कस के घूँघट पकड़कर बैठ गई कि कहीं घूँघट उठाकर देख न ले, लेकिन उस बालक ने जबरजस्ती घूँघट उठाकर चेहरा देखा और भाग गया।

                    थोड़ी देर में उसका पति आ गया, उसनेसारी बात अपने पतिसे कही।पति ने कहा - तुमने मुझे आवाज क्यों नहीं दी ? लड़की बोली - वह तो इतनेमें भाग ही गया था। पति बोला - चिंता मत करो, वृंदावन बहुत बड़ा थोड़े ही है। कभी किसी गली में खेलता मिल गया तो हड्डी पसली एक कर दूँगा , फिर कभी ऐसा नहीं कर सकेगा। तुम्हे जहाँ भी दिखे, मुझे जरुर बताना।

              फिर दोनों घर गए,
                    कुछ दिन बाद उसकी सास ने अपने बेटे से कहा- बेटा! देख तेरा विवाह हो गया, बहू मायके से भी आ गई, पर तुम दोनों अभी तक ठाकुर जी केदर्शन के लिए नहीं गए कल जाकर बहू को दर्शन कराकर लाना। अब अगले दिन दोनों पति पत्नी ठाकुर जी के दर्शन केलिए मंदिर जाते है , मंदिर में बहुत भीड़ थी।

              लड़का कहने लगा -
                    देखो ! तुम स्त्रियों के साथ आगे जाकर दर्शन करो, में भी आता हूँ। अब वह आगे गई पर घूंघट नहीं उठाती उसे डर लगता कोई बड़ा बूढ़ा देखेगा तो कहेगा नई बहू घूँघट के बिना घूम रही है।

             बहुत देर हो गई पीछे से पति ने आकर कहा -
                    अरी बाव्ली ! ठाकुर जी सामनेहै, घूँघट काहे नाय खोले,घूँघट नाय खोलेगी तो दर्शन कैसे करेगी,
अब उसने अपना घूँघट उठाया और जो ठाकुर जी की ओर देखा तो ठाकुर की जगह वही बालक मुस्कुराता हुआ दिखा। तो एकदम से चिल्लाने लगी - सुनिये जल्दी आओ ! जल्दी आओ !

          पति पीछे से भागा- भागा आया बोला क्या हुआ?
                    लड़की बोली - उस दिन जो मुझे भाभी-भाभी कहकर भागा था वह बालक मिल गया।

         पति ने कहा - कहाँ है ,अभी उसे देखता हूँ ?
                    तो ठाकुर जी की ओर इशारा करके बोली- ये रहा, आपके सामने ही तो है,

                    उसके पति ने जो देखा तो अवाक रह गया और वही मंदिर में ही अपनी पत्नी के चरणों में गिर पड़ा। बोला - तुम धन्य हो ! वास्तव में तुम्हारे ह्रदय में सच्चा भाव ठाकुर जी के प्रति है,
मै इतने वर्षों से वृंदावन में हूँ । मुझे आज तक उनके दर्शन नहीं हुए और तेरा भाव इतना उच्च है कि ठाकुर जी के तुझे दर्शन हुए.....

❇ श्रीराधारमणाय समर्पणं ❇


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                                THANKS

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