निरन्तर भक्ति भावसे ही गोविन्द कीप्राप्ति होती है।
जो भक्त निरन्तर गोपी भावसे अपने गोविन्द को भजतेहैं, उस पर भगवान श्री हरि अवश्य ही कृपा करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने भी स्वयं गीता में कहा है।
"तेशांसततयुक्तां भजतां प्रीतिपूर्वकं,
ददामि बुद्धि योगंतं येन मामुपयान्तिते"
अर्थात् जो निरन्तर मेरे ध्यान में लगे हुए प्रेम पूर्वक मेरा भजन करते हैं, उन्हें मैं तत्वज्ञान रूप योग देता हूं, जिससे वे मेरे कोही प्राप्त होते हैं.
गोपियां भी तो यही भाव रखती थीं।
गोपी किसी स्त्री जाति को नहीं कहते बल्कि गोपी तो एक भाव का नाम है।
गोपी काअर्थ है 'गौ'अर्थात् इन्द्रिय और 'पी'अर्थात् पीना।
गोभिःइन्द्रियैः कृश्णरसं विपति इतिगोपी।
अर्थात् : जो प्रत्येक इन्द्रिय से हर परिस्थिति में उठते बैठते, चलते फिरतेश्रीकृष्ण रस कापानकरें।
श्रीकृष्ण काही चिन्तन करें वह गोपी हैं.
बृजमण्डल की जितनी भी गोपियां थीं।
वो निरन्तर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में ही अपना ध्यान लगाती थीं।
गोपी के आटे में कृष्ण
गोपी के माखनमें कृष्ण
गोपी के हर काममें कृष्ण
मानसवाचा कर्मणा
हर जगह कृष्ण-कृष्णे - कृष्णत रहते थे, और इसी भाव ने उन्हें गोपी बनाया।
यदि हम भीअपने कन्हैया को गोपी भाव से याद करेंगे, तो वो प्यारा सा कन्हैया आज भी हमारे आपके बीचमें प्रकट हो सकताहै.
जो भक्त निरन्तर गोपी भावसे अपने गोविन्द को भजतेहैं, उस पर भगवान श्री हरि अवश्य ही कृपा करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने भी स्वयं गीता में कहा है।
"तेशांसततयुक्तां भजतां प्रीतिपूर्वकं,
ददामि बुद्धि योगंतं येन मामुपयान्तिते"
अर्थात् जो निरन्तर मेरे ध्यान में लगे हुए प्रेम पूर्वक मेरा भजन करते हैं, उन्हें मैं तत्वज्ञान रूप योग देता हूं, जिससे वे मेरे कोही प्राप्त होते हैं.
गोपियां भी तो यही भाव रखती थीं।
गोपी किसी स्त्री जाति को नहीं कहते बल्कि गोपी तो एक भाव का नाम है।
गोपी काअर्थ है 'गौ'अर्थात् इन्द्रिय और 'पी'अर्थात् पीना।
गोभिःइन्द्रियैः कृश्णरसं विपति इतिगोपी।
अर्थात् : जो प्रत्येक इन्द्रिय से हर परिस्थिति में उठते बैठते, चलते फिरतेश्रीकृष्ण रस कापानकरें।
श्रीकृष्ण काही चिन्तन करें वह गोपी हैं.
बृजमण्डल की जितनी भी गोपियां थीं।
वो निरन्तर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में ही अपना ध्यान लगाती थीं।
गोपी के आटे में कृष्ण
गोपी के माखनमें कृष्ण
गोपी के हर काममें कृष्ण
मानसवाचा कर्मणा
हर जगह कृष्ण-कृष्णे - कृष्णत रहते थे, और इसी भाव ने उन्हें गोपी बनाया।
यदि हम भीअपने कन्हैया को गोपी भाव से याद करेंगे, तो वो प्यारा सा कन्हैया आज भी हमारे आपके बीचमें प्रकट हो सकताहै.
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